Wednesday, June 13, 2007

आज ...

रोज़ मेरा आज आता मेरे सामने
और करता सवाल मुझसे ,
किया क्या आज ऐसा तूने
कह सके तू जिसे सार्थक
और जिस के लिये मिला तुझे मानव जन्म,
और मैं पड़ जाता सोच में
जुटाता दिन भर का ब्यौरा
और करता मुल्यांकन उनका ,
तब लगता
दिन यों ही व्यर्थ गया ,
किया नही आज कुछ ऐसा
जिसके लिये मिल यह जन्म ,
हमेशा लगता मुझे
और अच्छा कर सकता था मैं,
फिर क्यों ना कर सका ऐसा मैं
कदाचित यह मेरे आलस्य था
जिस में मैं जकडा था
और स्वतंत्र होने का प्रयास भी ना किया,
तब समय /आज देता साहस और कहता
सो गया है तेरे अन्दर का विश्वास
जगा इस विश्वास को और जुट जी जान से
फिर देखना वो ही होगा जो तू चाहेगा
तेरा मार्ग स्वम तेरे कदमो तले आजायेगा ...
--- अमित २८/०४/०५

1 comment:

Ramu said...

wonderful sir !!!, maan gye good one .... Very encouraging and revaling , it happens with everyone seriously man ..... good one brother, keep it up !!!