Thursday, October 9, 2008

सब से अलग है पहचान हमारी ...

पनपते है हजारो सपने

हमारी आंखों में

और करते है हम सर्जन

उन रास्तों का

हो जिन से सच हमारे सपने

दी गई जब भी कोई चुनौती

हमने हाथो हाथ लिया

दृढ़ निश्चय कर हम आगे बढे

आसान माना ये डगर नही

साहस, भी यहाँ कम नही

रख अपने मूल्यों को ऊँचा

हर चुनौती पर विजय हमने पाई

देख ये बढ़ता हुआ आत्म विस्वास हमारा

जुड़ता जा रहा है हमसे दुनिया का हर किनारा

और आगे ही बढता जा रहा है कारवां हमारा

सबसे आगे जाने की है पूरी तैयारी

समय से तेज है रफ़्तार हमारी

हाँ , सब से अलग है पहचान हमारी ...

--- अमित २८ /०९ /०८

Tuesday, July 29, 2008

संघर्ष...

प्रचार का ज़माना है
प्रयास चारो ओर पुर ज़ोर है
हमें भी प्रतिस्पर्धा में आना था
हम क्या किसी से कम है
बस यही सब को दिखाना था
नित नये प्रयास किये जाते थे
खेल हुआ या हुआ कुछ सहयोग
बढ़ चढ़ कर हमने भाग लिया
परिणाम चाहे कुछ रहा हो
हम हर ज़गह नज़र आए
दिनों दिन हम आगे बढ़ते जा रहे थे
और सब की नज़र में चढ़ते जा रहे थे
ज्ञान बाटने से बढ़ता है,
यही सोच ठान लिया ,
ज्ञान बाटकर, ज्ञान बढाने का काम
और दिया "संघर्ष" इस शुरुआत का नाम
देर ही सही
मगर महनेत रंग लाती है
"संघर्ष" को देखो,
नया सीखने की चहा साफ़ नज़र आती है ...
संघर्ष: It was a knowledge sharing event in Infosys by my team CCD...
--- अमित २९/०७/०८

Saturday, July 12, 2008

इतने तुम याद आओगे

चाहे जहाँ चाहो

चले तुम जाओ

कौन परवाह करता है

क्या तुम्हे लगता है

बस तुम से ही हम है

न होगे तुम तो

कहीं न हम होंगे

तुम्हे क्या पता

बस, अपने दम से है हम

याद न एक दिन आयगी

मजे में बसर जिन्दगी हो जायेगी

क्यों ये विश्वास

आज हमे धोखा दिए जाता है

रह रह साथ गुजारा

हर पल याद आता है

की जो तुम से बे-रुखियाँ

जला उनसे आज मन जाता है

याद तुम न आओगे

ये महज एक धोखा था

न पाकर तुम्हे करीब

दिल अपना रोता है

ये न सोचता था कभी

इतने तुम याद आओगे ...

--- अमित १२/०७/०८

Friday, July 11, 2008

आज़ादी ...

आज़ादी,
शब्द सुनते ही,
जोश की लहर दौड़ जाती
जोश तो जोश है
समय, बे-समय आ जाती
होश अगर इसमे खो जाए
यारो, शामत बडी आ जाती
हाल अपना भी कुछ ऐसा हुआ
श्रीमति जी जो मायके गई
१५ अगस्त सा हर दिन लगता
किस को अब पडी है
जो सुबह सुबह उठता
सुबह की सैर अब कहाँ होती है
९ बजे आँखे अब खुलती है
घर का काज कैसे, क्या होता है
नई आज़ादी में ख्याल कहाँ होता है
अखाडे में जा अब देही कौन तोडे
काम और करने को हमने रख छोडे
फल अब से कहाँ खाए जाते है
रोज पिज्जा - बर्गर मगाए जाते है
आख़िर, आज़ादी का जोश था
आगे क्या होगा किसे होश था
श्रीमती जी कब वापस आएँगी
जोश मैं ये भी भूल गये
गई शाम घर जब लौटे तो
देख श्रीमती जी को घर पर
हाथ से तोते छूट गये
देख हालत घर की और हमारी
वो गुर्राई जाती थी
सुनके दहाड़े उनकी,
जोश को भी धीरे धीरे होश आई जाती थी
हालत पर अपनी बडा तरस आता था
अब हमे ख्याल आता था
जब से हुई शादी, दूर हुई हम से आज़ादी ...
--- अमित ११/०७/08


Monday, June 30, 2008

हालात ...

देता है हर कोई
दुहाई, अपने हालातो की
अगर हालात हुए कुछ और होते
तो अपना ये मुकाम न होता
जहाँ आज गिनते हो तुम औरों को
वही कहीं अपना भी नाम होता
ऐसा नही के हम काबिल न थे
बस, बदले जमाने से वाकिफ नही थे
दावं - पेच इसके हमें समझ नही आते थे
और साथी हमारे आगे निकल जाते थे
सच्ची लगन मगर कहाँ छुप पाती है
रात कितनी भी घनी हो
सुबह से हार ही जाती है
तुम रहो साथ मेरे ,
करो मेरा विश्वास
और कोई नही , ख़ुद बदलूँगा
मैं अपने हालात
मैं करता नही वादा
कि तारे मैं तोड़ कर लाऊँगा
साथ रहो तुम मेरे
आकाश तक तुम को ले जाऊं मैं ...
--- अमित ३०/०६/०८

कहते है वो ...

कहते है वो

हम से भी हो परदा

तो क्या हुआ

जो हम है एक - दूजे के

शर्म तो हमारा गहना है

आप कुछ कहे

हमें तो परदा-नशीं ही रहना है

ना रहे परदे में तो

हया से आँखे झुक जाती है

हाथों में लगी हिना की लाली

रुखसारों पे आ जाती है

सर्द सा जिस्म होने लगता है

जान सी जैसे, निकली जाती है

आप तो बडे बे-शर्म है

शर्म आप को कहाँ आती है

मिलती है आप से नज़रे

और जान हमारी जाती है

हलकी सी एक छुहन

सिरहन एक जिस्म में दौड़ जाती है

अभी रहो जरा दूर ही हम से

महोबत की ये खुमारी

हम से न सही जाती है ...

---अमित ३०/०६/०८

Wednesday, May 14, 2008

नारी कहे ...

नारी कहे

क्यों बनू मैं सीता

तुम राम बनो या न बनो

मैं अग्नि परीक्षा में झोकी जाऊँगी

तुम तो फ़िर रहोगे महलो में

और मैं वनवास को जाऊँगी

नारी कहे

क्यों बनू मैं द्रोपदी

तुम धर्म-राज बनो या न बनो

मैं तो जुए में फ़िर हार दी जाऊँगी

तुम करोगे महाभारत सत्ता को

इसकी दोषी मैं रख दी जाऊँगी

नारी कहे

क्यों बनू मैं तारा

तुम हरिश्चंद बनो या न बनो

मैं तो नीच कहलादी जाऊँगी

मेरे बच्चे को मारोगे तुम

उसे जीवित कराने को मैं बुलाई जाऊँगी

नारी कहे

क्यों बनू मैं मीरा

तुम कान्हा बनो या न बनो

मेरी भक्ति तो फ़िर लज्जित की जायेगी

तुम को तो कुछ न होगा

और मैं विषपान को विवश की जाऊँगी

नारी कहे

क्यों बनू मैं अहिल्या

मैं तो फ़िर किसी इन्द्र के द्वारा छली जाऊँगी

और जीवन पत्थर बन राम की प्रतिक्षा में बिताओंगी

नारी कहे , कोई बताय

क्यों बनू मैं आदर्श नारी

क्या कोई आदर्श पुरूष मैं पाऊँगी ...

--- अमित १४/०५/०८

आई-टी २०५० में ...

दोपहर को जब साहिब-जादे उठे
कुछ उदास से लगे
यों तो दिन सूरज चढ़े ही होता है
मगर यदा कदा दोपहर को भी होता है
हाल जब पूछा, तो यों जबाब आया
डैड,
सिस्टम मेरा सारा डाउन है
बिहेव बडा इम्प्रोपर है
प्रोसेसिंग हो रही स्लो हैं
मेर्मोरी से सी-पी-यू को सिग्नल नही जाता है
डाऊनलोड कुछ हो नही पाता है
प्रोसेसिंग शुरू होते ही सिस्टम हंग हो जाता है
कल से हार्ड डिस्क मेरी ब्लंक है
कल गर्ल फ्रंद का ई-मेल आया था
प्रोपोसल का रिफियूज़ल उसमें पाया था
पिंग भी कर दिया उसने ब्लाक है
सी-पी-यू तब से देता बीप है
हुआ वायरस एटैक सा मेरा हाल है
साहिब-जादे की हालत हमे समझ आ गई
फॉर्मेट अपने सिस्टम को कर डालो
पढ़ई का उसमे ओ-एस डालो
फिर न हो कोई वायरस एटैक
इसलिए लगाओ स्पोर्ट्स का फायर वाल
झट सॉल्यूशन हमने दे डाला
२०५० का है अपना अंदाज़ निराला
आई-टी बनके रह गया जग सारा...
--- अमित १४/०५/०७

Saturday, April 26, 2008

भावनाए ...

दिखाई नही येँ देती हैं
समझा बस इनको जाता है
बाँधी नही येँ जाती हैं
बंधा इनसे बस जाता है
जुबाँ कुछ होती नही इनकी
इन्ही से इनको समझा जाता है
जात- पात, धर्म-मजहब
इनको कुछ पता नही
रिश्तों की कोई ज़ंजीर नही
सरहदों से कहाँ येँ थम पाती हैं
चीर सरहदों को
दूर दिलो तक जाती हैं
नही कुछ और येँ
भावनाए हैं,
जो हर दिल में पाई जाती हैं ...
--- अमित २६/०४/०८

Friday, April 25, 2008

सोच ...

अक्सर मैं कुछ लोगो की
बातो पर बस मुस्काता हूँ
देख कर उनकी सोच समझ
ख़ुद सोच में पड़ जाता हूँ
ये कर देंगे, वो कर देंगे
ये ग़लत है, ये नही होने देंगे
नारे वो सब लगाते है
काम नही कुछ और उन्हें
बस बातों की वो खाते है
और बातों में ही वो जीते है
आए जब मौका कुछ करने का
दूर नज़र न ये आते है
कहना तब इन का होता है
हमने तो बस सोचा था
सोच से कहाँ कुछ होता है
हम तो अकेले ही है
अकेले जन से क्या होता है
अब मूढ़ों को कौन बताए
सोच से ही सब होता है
एक अकेला सोच अपनी बदले
देख उसे दूजा फिर सोचे
देख बदलता फ़िर दूजे को
तीसरा को लगता वो भी सोचे
सोच में वो ताकत
जब बढ़ कर रूप अपना लेले
सिहासन ख़ुद हिलने लगता है
और स्मिर्धि का फूल
हर तरफ़ खिलने लगता है ....
( अपने गुरु जी को समर्पित )
--- अमित २५/०४/०७

Monday, April 7, 2008

काश करता कोई हमे भी प्यार...

हमारे दिल में बस
हसरते पनपती रहती है
वो कोई और ही है
खुदा की रहमत
जिन पर बरसती है
उनको देखना और
देख कर आहे भरना
जिन्दगी अपनी यों गुजरती है
कौन जाने किस के पहलु में
श्यामें उनकी गुजरती होंगी
हम तो बस सोचते भर है
काश ऐसा होता
हमारे लिए भी
राहे कोई तकता
काश ऐसा होता
रूठे हुए हम होते
और कोई हमारी मनुहार करता
नित कर नये नये श्रृंगार
हमे भी कोई रिझाता
और होते जब हम उदास
होता वो हर दम पास
करते उससे हम अपनी
भावनाओं का इजहार
और होते उसे भी
हमारी भावनाओं से इकरार
काश,
काश करता कोई हमे भी प्यार ...
--- अमित ०७/०४/०८

Wednesday, April 2, 2008

अप्रैल फूल...

अप्रैल का महीना करीब आ रहा था

कैसे लोगो को बेवकूफ बनाये

यही ख्याल जहन मेबार-बार आ रहा था

रोज नई तरकीबे बन जाती थी

इस में ये कमी है , उसमे वो कमी हैं

ये सोच छोड़ दी जाती थी

एक नया विचार तव आया

ऑफिस वालो को अप्रैल फूल बनाने का

प्लान तव हमने बनाया

एक तारीख को ऑफिस जा हम ने

इस्तीफा अपना दे डाला

होंटों पर मुस्कान लिए

ऑफिस में हम घूमते जाते थे

मेनेजर साब का क्या ज़बाब आएगा

इस इंतज़ार में समय बिताते थे

थोडी देर में उनका कॉल आया

खुशी खुशी हमने भी फ़ोन उठाया

दहाड़ने की आवाज उधर से आती थी

साहब ने फरमाया ,

इस्तीफा हम मंजूर करते हैं

तुम हम से मिलने आओ

इसी बीच एकाउण्ट डिसेबल हम करते हैं

ये सुन हम सकते में आ गए

देख अपना एकाउण्ट डिसेबल और घबरा गए

मेनेजर साब के आगे " सॉरी सर "

यही दो शब्द जबान से बोले जाते थे

देख हमे परेशान हाल

मंद मंद वो मुस्काते थे

एक बार वो फ़िर से गरजे

क्या सोचते थे, अप्रैल फूल हमे बनाओगे

ये सब हथकंडे हमी पर अजमाओगे

मेनेजर हम यों ही नही हैं, सभी का ख्याल रखते हैं

"अप्रैल फूल" अब तुमबन चुके

और मजाक भी बहुत कर चुके

जाओ जा कर काम करो

एकाउण्ट तुम्हारा अनेबल हम कर चुके

जान मे तव जान हमारी आई

सोचा न था व्यस्त मेनेजर ध्यान इतना दे पायेंगे

"अप्रैल फूल" का मजाक यो पकड़ पायेगे

कान हम अब पकड़ते हैं ,

ऐसा "अप्रैल फूल" न अब किसी को बनाएगे

सीमाये अपने अब न भुलायेगे ,

मजाक हैं , मजाक तक हैं इस्तमाल में लायेंगे ...

--- अमित ०२/०४/०८

Monday, March 24, 2008

बडा शिकार ...

बहुत हुआ छोटा छोटा शिकार
चलो मारे एक बडा हाथ अब
ये मान्यवर,
साधारण श्रेणी से दूर
प्राणियों में गिने जाते है
छोटों की तो बात करे क्या
बडे - बडे इन से घबराते है
नीचे जो है इनके
बेचारे बस मिमियाते है
और अधिकारी जी देख इनको
कोने से सरक जाते है
कब दफ्तर को आना है
कब दफ्तर से जाना है
अपने मन का सौदा है
जब मन में आए आना है
जब मन में आए आ जाना है
काम होता है किस चिडिया का नाम
ये सवाल बहुत ही पुराना है
सुविधाओं को कहाँ इन्हे बरतना होता है
कैसे हो उसका हनन
जोर सारा वहाँ लगा होता है
और उस पर कहना ये
जो भी हो अपना क्या कुछ जाता है
कहाँ से कितना पैसा आए
किसने कितना पैसा पाया
यही सोच सोच कर दिन जाता है
जैसी देह विकराल है
बुद्धि भी वैसी पाई है
अक्ल के पीछे हमेशा लाठी होती है
पर ना जाने
व्यापारी बुद्धि कहाँ से इतनी आई है
कब किस को किसे लडवा दिया
कब किस की पीठ में छुर्रा लगा दिया
पता लगा मुश्किल है
और काम जो ये कर गया
समझो इनकी तिकड़म से बच गया
दूर से ही इनको करो प्रणाम
बच के इनसे रहने का रास्ता सब से आसान ...
--- अमित २०/०३/०८

Tuesday, March 11, 2008

आई एक मेल ...

आज सुबह जब ऑफिस पहुंचे
देखा एक गुड मोर्निंग का मेल आया
यों तो , ये हमारे नये मित्र है
पर हमे अचरज ये हुआ
यकायक इन्हे हमारा ख्याल क्यों आया
उत्सुकतावश हमे मेल जा खोला
मेल देख हुई बड़ी हैरानी
कुछ कुशल क्षेम न पूछी थी
बस एक वेब साइट का लिंक आया था
हम ठहरे , थोड़े शौकीन
सोचा किसी कविता का पता बताया होगा
पहुंचे जब हम वेब साइट
देख उसे सर हमारा चकराया
पॉप -उप होते विज्ञापनों में
बस पैसा-पैसा-पैसा छाया था
ये कुछ और नही
मनी कंट्रोल का लिंक आया था
हमारे ये मित्र भी अजीब है
इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी के हो कर
शेयर बाज़ार के करीब है
बाज़ार की तेज़ी - मंदी
इनकी नब्ज़ में झलकती है
जब भी मिल जाओ इनसे
बस शेयर की की बात चलती है
ये भी हम से अनजान है
शेयर की भाषा न हमे आती है
कविता करना बस एक शौक है
ये तो इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी है
जिस से हमारी रोटी चल जाती है ...
--- अमित ११/०३/२००८

Friday, March 7, 2008

इन से भी मिलते है ...

चलिए साब
चलते-चलते आप से भी मिलते है
बाकी सब की तरह
आप की भी अपनी ढपली अपना राग है
मगर, आप का रिकार्ड जरा ख़राब है
बजता हमेशा बस एक ही राग है
यों तो शान्ति है इनको प्यारी
मगर तुनक मिजाजी ने की गड़बड़ सारी
बात जरा सी भी नाक पर आ जाती
और बेचारी नाक हर जगह अड़ जाती
नाक तो फिर नाक है
सारी दुनिया इसके आगे हारी है
फिर अखाडे का क्या
कहीं भी जम जाता है
खाने की मेज़ वो जगह है
जहाँ आप फुल फॉर्म में पाये जाते है
इसे कुछ ग़लत न समझे
यों तो सामान्य लोगो सा ही खाते है
मगर भावनाओं में बह
भीड़ पर जरा भड़क जाते है
उठाई अगर किसी ने एक ऊँगली
पांचो उँगलियों से ज़बाब आपने दिया
बात हुई जब भी अपने "देस" की
परचम "देस" का अपने उपर किया
चाहे हो सही , चाहे हो ग़लत
अपने को ही उपर किया ...
--- अमित ०७/०३/०८

Tuesday, March 4, 2008

ऐसे ही है ये ...

सुबह सुबह उठना
नहा-धो तैयार हो
खुली आँख से सपने बुनना
बस यही काम है इनका
ऑफिस में सबसे पहले
कम्युनिकेटर ही ओपन होता है
कल कहाँ बात खत्म हुई थी
दीमाग पर यह ज़ोर होता है इनका
और क्यों न हो
रोज नया पाठ जो शुरू करना होता है
सुबह सुबह इनके दर्शन होते है
दोपहर से शाम कहाँ गुजरी
कहाँ किसे पता होता है
शाम को जब ये लौटे
फिर कम्युनिकेटर का ही ख्याल होता है
कुछ इधर घूम , कुछ उधर घूम
रात को घर जब ये पहुंचे
फ़ोन बेचार कान पर लगा होता है
कहीं डाउन न हो जाए बैट्री
इसलिए फ़ोन चार्जर पर लगा होता है
इनके साथ जो जाग सके
इतना साहस हमसे कहाँ होता है
लाख इन्हे हम समझाये
लाख इन्हे हम धमकाए
जबान पर तव इनकी, ताला होता है
"कोई भी " नाम इनका पुकारे
नाम के आगे "मीठा" लगा होता है ...
--- अमित ०४/०३/२००८

Sunday, March 2, 2008

नबाबी ठाठ...

ठाठो में है लाखो ठाठ

शौको में है लाखो शौक

अदाओं में है लाखों अदा

देर से आने की अदा

सबसे जुदा है ये अदा

और हो भी क्यों न

नबाबी है इसका अंदाज़

और लगता जैसे

बढ़ गया अपना रुबाब

बोला दोस्तों को साथ चलेंगे

पहुंचे जब सब

देखा नवाब सोये पडे है

किया वादा की नाश्ता साथ करेंगे

और दिखाई रात को दिए

जब उन्होंने हमे कहा

बस १० मिनट रुको

हम रुके तो ज़रूर

और घड़ी के घूमते काटे गिने

करते कोशिश है बहुत

करे खिचाई औरो को

और हमेशा ही उलटी पड़ी

देख उनकी झेप

चढती सबको मस्ती बडी

प्यारे ये हम सभी के है

आदत से मगर सब घबराते है

चाहे सब करे कितनी भी मिन्नत

"नबाब साब" अपने समय से ही आते है ...

--- अमित २/०३/०८

Friday, February 29, 2008

मित्र हमारे ...

हमारे एक मित्र है
आदतों से जरा विचित्र है
जरा शौकीन से है इनके मिजाज़
और सब से अलग है इनका अंदाज़
अक्ल का झोला तो है इनके पास
पर एक गाँठ है उस पर लगा हुआ
खत्म उसके हो जाने से डरते है
इस लिए जरा संभल कर खरचते है
अमूमन हमारे साथ ही विचरते हैं
और अपनी खुराफातो से चर्चा में रहते है
कौन जाने हम से डरते है या बडा दिल रहते है
जो हर दम हमारी खिचाई चुपचाप सहते है
हिन्दी बोलने का शौक बहुत है
पर जबान दगा कर जाती है
जब भी देखो, बेचारी फिसल जाती है
शब्द भी उनसे मजाक करते है
आगे पीछे हो, दिमाग खराब करते है
श्रीमान कब श्रीमती में बदले
जनाब ख़ुद भूल जाते है
इधर - उधर का अंतर रोज हम बताते है
कृष्णा के ये परम भक्त है
और अनुकम्पा हनुमान की पाते है
लाख करे ये लीला, लाख करे ये कोशिश
गोपियों को जरा कम ही भाते है
ज्ञान इनका अपरम-पार है
गोपी ने नाम भर से ही सारा पता बताते है
समाचार पत्र भी इन्ही की दया का पात्र है
अरे एक बात तो हम भी भूल गए
दुसरे शौक और भी अजीब है
घड़ी घड़ी अपनी जुल्फों को बनाते है
आप बस फोटो का नाम ले
अनायस हाथ जुल्फों में उलझ जाते है
यो तो हिन्दी से नही ठीक इनका व्यवहार है
पर अतिशोक्ति अलंकार से इन्हे बडा प्यार है
इनके आगे जहाज भी घडे में डूब जाते हैं
और ये तैर कर किनारे आ जाते हैं
शौक तो आख़िर शौक ठहरे,
जाने कैसे कैसे हो जाते है
पर जनाब दिल से है "हीरे "
तभी तो है हर दिल में ठहरे...

Friday, February 22, 2008

किसे पता ???

एक दिन मिले दो अजनबी
पास ज़रूर थी
कुछ- कुछ जाने पहचानो की भीड़ लगी
चंद पलों का ये साथ था
जीवन पर्यंत साथ रहने का शुरुआत था
क्या चंद पल पर्याप्त थे
किसे पता ???
कुछ दिन मेहमानों का मजमा लगा
खुशियाँ मनी , जश्न चला
और दो लोगो ने डरते-डरते
ढेरों उमांगो संग नवजीवन में प्रवेश किया
क्या होगा उन अरमानों का
किसे पता ???
सब अच्छा हो तो दिल खुश होता
कुछ लगे बुरा तो दिल रोता
दोनों चाहाते बस खुश रहना
पर क्या है वो जिससे सब ठीक रहता
किसे पता ???
--- अमित २५/०२/२००८

Tuesday, February 19, 2008

जो है अधिकार मेरा !

क्यों मांगू मैं
भीख सा
जो है अधिकार मेरा !
क्यों स्विकारू मैं
दया सा
आत्म सम्मान है मेरा !
क्यों समझते हो
स्वं को
सबका सर्वेसर्वा !
मैं जन्मा नही
जन्मी हूँ मैं
तो कोई
अपराध नही है
एक मानव हूँ मैं
और अधिकार है मेरा
पाना एक मानव का सम्मान !
--- अमित १९/०२/२००८


Thursday, February 14, 2008

पहला वैलेंटाइन डे ...

श्रीमती जी, अभी कुछ दिन हुए
ससुराल छोड़ , हमारे साथ आई
एअरपोर्ट उन्हें लेने जा
हमने भी पत्नी भक्ति दिखाई
यहाँ आ उनको लगा
नई आज़ादी उन्होंने पाई
जो लगते थे कभी कट गए
वो "पर" वापस निकल आए
दो दिन आराम करवा
उनको नए शहर की सैर कराई
देख कर खूबसूरती शहर की
वो खूब ही ह्र्षाई,और हमसे बोली
अब आसानी से घर नही जाऊँगी
चाहे जैसे रखो,
चुप-चाप आप के साथ रह जाऊँगी
हम भी खुश थे ,
वैसे भी अभी कहाँ अपने "घर" जाना था
श्रीमती जी नित नई फरमाइश ना करे
बस अपना इतना ही चाहना था
श्री मानो के चाहने से क्या होता है
परचम तो श्री मतियों का लहरा होता है
इसका आभास हमे कल हुआ
जब श्री मति जी ने पास आ प्यार से कहा
अजी कल का क्या प्रोग्राम है
हमने भी जरा लाड दिखाया और कहा
आप जे ओ बोले , बन्दा तो आप का गुलाम है
उन्होंने तव फरमाया , ठीक है
पहले तो डिस्को चलेंगे और फ़िर
रात का खाना बाहर करेंगे
अभी तक तो हम ठीक थे
ये सुन जरा घबरा गए
कल को ऐसा क्या "ख़ास " है
ये सवाल कर, आफत में आ गए
इस परवो जरा गरमा गई और
शेरनी सी धाड़ कर सामने आ गई
शादी होते ही सब भूल गए
प्यार के शौक चार दिन में धुल गए
कल "वैलेंटाइन डे" है , वो भी पहला
हम साथ में मनायंगे ,
जहाँ दिल चहयेगा , वहाँ जायेंगे
आवाज़ के रुख से समय को हम भाप गए
हमतो मजाक कर रहे थे , कह बात ताल गए
समझ गए थे , "संत वैलेंटाइन" तो गए स्वर्ग सिधार
और हम श्री मानो को छोड़ गए ये खेर्चे का त्यौहार ...
---- अमित १४/०२/२००८

Friday, January 18, 2008

चलो आज थोडा सा रोमानी हो जाएँ ...

चलो आज थोडा सा रोमानी हो जाएँ
लौट चले अपने कल में
और आज को अपने भूल जाये
चलो आज थोडा सा रोमानी हो जाएँ
आज जीवन की रफ़्तार से थोडा थक चुके है
बीते कल में चलो झाँक आये
थी वहाँ जो जिन्दगी
चलो फिर एक बार उसे जी आये
चलो आज थोडा सा रोमानी हो जाएँ
तुम से प्यार करना तो जिन्दगी है
जीना हमे अभी बहुत है
दिल चाहता है इसकी शुरुआत से फिर मिल आये
चलो आज थोडा सा रोमानी हो जाएँ
तुम्हारे साथ यों तो हर लम्हा अनमोल है
चलो थोडा यादों का खजाना बटोर लाये
चलो आज थोडा सा रोमानी हो जाएँ
फुरसत में तो हमेशा ही साथ हम होते है
चलो आज वक़्त से कुछ लम्हे चुरा हम लाये
चलो आज थोडा सा रोमानी हो जाएँ
जिन्दगी की बातो पर बहुत मुस्काये है हम
चलो आज बिन बात कहकहे लगाए
चलो आज थोडा सा रोमानी हो जाएँ
इस दुनिया के साथ ही रहे अब तक हम
चलो आज दूर इस से कहीं निकल जाये हम
दिल कहता है
चलो आज थोडा सा रोमानी हो जाएँ हम ...
--- अमित १८/०१/२००८

Thursday, January 3, 2008

यों मना नया साल ...

३१ दिसम्बर , दौडा आ रहा था
हर्षित तो हम भी थे
मगर कुछ को, कुछ जयादा ही हर्षा रहा था
मानो , इस बार पहली बार आ रहा था
प्लान थे, के रोज नए बन जाते थे
इस डिस्को नही , उस डिस्को जायेंगे
वो मयखाना अच्छा है,
जाम, अब तो वहीं छलकेंगे
खाने का क्या है, रोज ही तो खाते है
ये ख़ुशी के जाम है
कहाँ रोज-रोज छलकाए जाते है
पलक झपकते ही ३१ दिसम्बर की शाम आई
दिल की उमंगो ने ली एक मीठी अंगडाई
हमने भी सूट पहना, टाई लगाई
दोस्तों की मंडली भी सज- धज साथ में आई
दिल में उमेंगे ले हम डिस्को पहुंचे
देख के मंज़र वहाँ का,
ख़ुशी के "तारे जमीन पर" पहुचे
मयखाने का हाल और गज़ब था
वहाँ जा कोई "तिल" भी रखे
साहस ऐसा हम में किस ने दिया था
अपनी कलाई पर जब ध्यान गया
ग्यारह पर दस तव बज गया था
खाने को जब दौड़ लगाई
बची कुची साग - भाजी अपने हाथ आई
घर जब पहुचे , नया साल घर आ बैठा था
सूरते अपनी उतरी थी ,
और नया साल हम पर हँसता था
--- अमित ०३/०१/०८