Sunday, June 10, 2007

कल्पना ...

सोचा है तुमने कभी
है सब से तेज़ रफ़्तार किसकी ,
कुछ और नही
बस मन की कल्पना है,
हैं सब से तेज़ रफ़्तार जिसकी,
कल्पनाए ही तो वो
जो बनाती हमे भार शून॒य
और करती सैर
अनंत आकाश की,
कभी कल्पना की उडान लेती
चांद की दिशा
और बनाती
खुशियों का वहाँ ये आशियाना
यह ही वो कल्पना है जो
तुम से दूर रहने पर भी
दूरियों को मिटती है
और तेरे करीब होने का
हर पल मुझको अहसास कराती है
ग़र यह कल्पना ना होती
तो शायरों की शायरी में यह बात ना होती
और जहान की खुबसुरती
ना यों ब-खूबी बयां होती
चाहता हूँ मैं तो बस
कल्पनाओं पर सवार रहना
यह ही तो है वोह
जो कराती है हर सपना पूरा...
--- अमित ०५/०४/०५

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