Saturday, June 16, 2007

गर्म चांदनी ...

आज जो हो रहा, ऐसा पहले तो ना हुआ
आज चांदनी रात है,
और ना जाने क्यों चांदनी जला रही मुझे,
ठण्डी हवा बह रही
और लू की मानिंद झुलसा रही मुझे ,
दिल पर मेरे बेचैनी है छाई
और इन आंखों को जैसे
नींद से दोस्ती बिल्कुल ना भायी,
ना जाने क्यों आज
चांदनी झुलसा रही मुझे,
शायद , ये तेरी यादें हैं
जो रह रह कर तडपा रही मुझे,
चांद में दिखता तेरा चेहरा
दूर से ही खिजा रहा मुझे,
तुझे क्या पता , क्या क्या इस दिल पर बीती है,
तेरी जुदाई में
घड़ियाँ भी सदियों में बीती है,
कहॉ है,
क्यों है तू दूर मुझसे ,
चली आ पास मेरे
काटे नही कटती तनहा
अब ज़िन्दगी मुझसे ...
--- अमित २६/०६/०५

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