आज यों जाने की जिद्द न कीजिये
चंद लम्हे अपने पहलू के और दीजिये
आज यों जाने की जिद्द न कीजिये ...
आफ़ताब तो अभी बस बुझा भर है
"दूजे" महताब को थोडा जल जाने दीजिये
आज यों जाने की जिद्द न कीजिये ...
उँगलियों की शरारत से उलझी हैं जुल्फें
सुलझाने का मौका जरा हमको दीजिये
आज यों जाने की जिद्द न कीजिये ...
गुफ़्तगू लबों की तो ख़त्म हुई
नज़रों को भी बाते चार करने दीजिये
आज यों जाने की जिद्द न कीजिये ...
मदहोश तो आलम बस अभी हुआ है
बरकार और अभी इसे रहने दीजिये
आज यों जाने की जिद्द न कीजिये ...
फरेबों में तो फिर हमको जाना ही है
मासूमियत का साथ थोडा और रहने दीजिये
आज यों जाने की जिद्द न कीजिये ...
नजदीकियां भी क्या, पलों में गुजर जाती हैं
दूरियों को आज, कुछ और देर दफ़न रहने दीजिये
आज यों जाने की जिद्द न कीजिये ...
आज यों जाने की जिद्द न कीजिये ...
आज यों जाने की जिद्द न कीजिये ...
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