उसकी निगाहों की गहराई में
शायद कहीं मैं भी हूँ
बस यही सोच उनमें उतरा
और फिर कभी उबार न पाया ...
उसके दिल के किसी कोने में
शायद कहीं मेरी जगह भी हो
बस यही सोच उस भूल-भुलैया में आया
और अभी भी भूल-भुलैया में खुद को पाया...
उसकी जुल्फों की एक गूथ तो होगी
शयद मेरे ख्याल में बाँधी होगी
बस इसी सोच में उनमें उलझा
और परांदा बन दिल उनमें गुथा पाया...
लबों पर शायद एक मुस्कान तो आती
होगी
और सुर्खी कुछ गालो पर उभर आती
होगी
कभी जब मेरा नाम उनके तसव्वुर में
होगा आया
बस इसी ख्याल में टकटकी बांधे उनको
निहारते खुद को पाया ...
(आज सुबह ऑफिस आते कुछ ऐसे ख्याल
दिल में आये )
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