Saturday, May 18, 2013

टूटी हुई सी वो आवाज़ ...

टूटी हुई सी उसकी वो आवाज़
मेरे अन्दर कुछ बिखेर सा जाती थी..
की कोशिश, करूं न मैं कुछ गौर
पर कुछ तो था, जो खींच ले जाता था मुझे उसकी ओर ...
दिल शायद उसका अभी अभी टूटा था
वादा किसी ने किया उससे झूठा था...
लड़खड़ाती अपनी आवाज़ से उसने कुछ समझाया
असर होता उसकी बात का न कुछ नज़र मुझे आया ...
कनखियों पर कभी कभी कुछ नमी नज़र आती थी
चुपचाप जो फिर पोंछ ली जाती थी...
अज़ीब एहसास मुझे कुछ हो रहा था
देख उसे बेचैन, बेचैन सा मैं हो रहा था...
उसके दिल से उठती टीस, मुझ तक भी आती थी
उस पर हो जाये खुदा की रहमत, दुआ लब पर आती थी...
आहिस्ता-आहिस्ता गला उसका रुध्ता जा रहा था
होगा मस्लाह हल, आसार नज़र न आ रहा था ...
अब तो डबडबा उसकी आँखें गई
थी जी आखिरी उम्मीद , शायद वो भी गई ...
जी में तो बहुत आया, पर हिम्मत न मैं जुटा पाया
जाता उसके पास, करता कुछ उस से बात
दवा उसके दर्द की जो न कर पता
हमदर्दी का मरहम , उसके ज़ख्मो पर रख आता ...
याद आज भी जब वो शाम आती है
उस आवाज़ की तड़प, बेचैन मुझे कर जाती है ...
(एक सच्ची घटना पर ...)

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