Saturday, May 18, 2013

कैसा सम्मान ...

खबर कल फिर ऐसी सुनी
सुन जिसे भिर्कुटी तानी ...

जांबाज़ था एक सिपाही,
नाम था जिसका "बाना" ...

१९८७ में सियाचिन में लक्ष्य था
झंडा भारत का फेहराना ...

दुश्मन के आगे उसने अदम्य साहस दिखाया
परम वीर का सम्मान तब सेना से उसने पाया ...

1998 में जब कारगिल ने आवाज लगाई
जिम्मेदारी वहां भी उसने पूरी निभाई ...

अब था उसको लेना कुछ आराम
इसलिए दिया उसने सेना सेवा को विराम ...

अब थी सरकार की बारी आई
कर्मठता उन्होंने भी पूरी निभाई ...

सरकार ने पेंशन फिर उसका लगवाया
हर महीने पैसा उसके खाते में डलवाया...

देख पेंशन का पैसा सर "बाना" का चकराया
खाते में जब १६६ रूपये जमा उसने पाया...

एक ही है सवाल उसकी और हमारी समझ न आता है
यह कैसा है सम्मान जो हमारे यहाँ वीरों को दिया जाता है...

आत्मसमर्पण पर आतंकवादी भी हजारों / लाखों पाते है
ले रिश्वत नेता- अधिकारी करोड़ो का खेल सजाते हैं ...

और वतन पर जो ज़ान फ़िदा कर जाते है
अक्सर बच्चे उनके भूखे ही रह जाते हैं ...

लगता है मर गया है ज़मीर अपना भी
हम भी बस कहानी पढ़ते है और सो जाते है ...

(PS: Interview of Bana Singh is available on Internet.)

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