Saturday, May 18, 2013

आप क्या कहते है ???

दबंगई की परिभाषा बदल गई है, बताता हूँ
क्या है नई परिभाषा, आओ सुनाता हूँ ...

पुरुष होते है दबंग, कभी था सुना
आज मुझे लगता, दबंगई है महिलयाओं का गहना ...

पुरुष तो अब चुपचाप पतली गली निकल जाते हैं
महिल्याये ही है जो बात-बात पर मैदान में डट जाते है ...

समझ इसे बे सिर-पैर की बात, आप क्यों मुस्काते है
सुनिए मेरे तर्क, फिर देखिये कितने लोग समर्थन में आते है ...

पीछे जाने से पहले आज की ही बात बताता हूँ
हुआ क्या सुबह आज बस में सुनाता हूँ ...

अपनी बारी पर उतारते, साब एक मोहतरमा के रास्ते आगये
फिर दिए जो ताव मोहतरमा ने, देख उन्हें पसीने हमे आगये ...

लगा हमे, अपनी बारी पर बस से उतरना जैसे साब का गुनाह था
"लेडीज़-फर्स्ट" शायद उन्होंने कभी सुना ही न था...

बस ही की हमे एक और कहानी याद आती है
थके-हारे शाम को घर जाते, बस में झपकी सबको आ ही जाती है...

काँधे पर किसी जनाब के जो किसी मोहतरमा का सिर आ जाये
रहती कोशिश खलल न उनकी नींद में कोई आये ...

और कहीं आप का सिर उन के काँधे को छु भर जाये
मिलेगी जब फिर मीठे शब्दों की तपिश, तो फिर नींद किसे आये ...

सड़कों पर आजकल कुछ किस्से तो आम हैं
कायदा-कानून, उन्हें न पता किस चिड़िया के नाम हैं ...

सैर चल रही कल बेगम के साथ थी
टोली ३/ ४ मोहतरमाओं की आती गलत हाथ थी ...

देख तेवर उन्हें हमने पहले ही उनको राह दी
गुजरते उनके हमको लगा, शायद कुछ और की उनको चाह थी ...

सिगनल्स तो सड़क पर कैसे तोड़-मरोड़ दिए जाते है
राम ही जाने कहाँ इनको इसके क्रेश-कोर्स दिए जाते है ...

और साब, आप में अगर बूता है तो इनसे साइड ले कर बताइए
साइड जो मिल जाये तो, सीधा गिनीज़ बुक में अपना नाम लिखवाइए...

"हम जहाँ खड़े हो जाये, लाइन वही से शुरू हो जाती है "
यह बात बस दुनिया में इन्हें ही समझ आई, बाकी ने तो बात कहने को दोहराई ...

हमने तो इस को बहुत बार आजमाया है
बस बे की हर कतार में महिलयाओं को ही आगे पाया है ...

गिलहेरी सी फुदक फुदक ये जाने कहाँ कहाँ घुस जाती है
और जो टकरा जाये आप इनसे, लाल-पीली आँखे फिर ये दिखाती हैं ...

कोई माने या न माने, देख इनके तेवर हमने तो माना
" हाय राम, कुड़ियों का है जमाना "...

No comments: