Monday, June 25, 2007

नवेली ...

कल ही कि तो बात थी
आई थी लाल जोडे में सजकर
छन-छन करती उस घर में, वो
अभी बरस भर भी नही हुआ था
कि चली गई फिर उसी जोडे में कुछ कान्धो पर वो
सुना है, बीमार थी वो
जानते सब है क्या बीमारी थी वोह,
अभी छः महिने भी नही हुऐ
आयी नवेली कोई
सजकर लाल जोडे में फिर उस घर मे ...
--- अमित २५/०६/०७

Thursday, June 21, 2007

ये भौरें ...

कलियों की, बागीचे मे हमारे कमी नही
सच यह भी है
तुम सी हसींन कोई नही
बैठे है भौरें यहाँ हर कलि पर सभी
जमी है मगर सभी की नज़रे
तुम पर कहीँ ना कहीँ
हसरत तो ना जाने कितने है इनकी
तरसते है इस बात को भी
छुले एक बार , बस एक बार
वो भी तुम्हे कभी
भारी हो जाती हैं साँसे इनकी
गुज़र जाती है जब
तुम्हारी खुशबूँ भी करीब से कहीँ
थमी से रहती है जिन्दगी इनकी
जब तक ना पडे तुम पर नज़र इनकी
देखे जब तुमको
आ जाता है बेचैन दिल को इनके करार
दीवानगी ने इनकी किया है इनका नाम
और इन्होने ही दिया "एस-एस-टी" तुम को नाम...
(आपने "सी-सी-डी" के भाईयों के लिये एक प्रयास!)।
--- अमित २१/०६/07

Wednesday, June 20, 2007

ये प्यार है ...

जब गया करीब उसके
ज़रा दूर हो गई
जब की बात उससे
ज़रा खामोश हो गई
मैं हुआ खफ़ा तो
आज फिर उसने क्हा
मैं करती हूँ प्यार तुम्हे
समझते तुम क्यों नही
सही है हम ही ना समझ है
मगर फिर किसी ने क्यों कहा
ये प्यार है
पृदर्शन माँगता है यह...
--- अमित २०/०६/०७

Monday, June 18, 2007

एक भजन : स्वामीनारायण संस्था से ...

मेरे अच्छे भगवान, दे दे ऐसा वरदान
मेरे अच्छे भगवान, दे दे ऐसा वरदान
मेरे अच्छे भगवान
सृष्टी के इस तेरे बाग़ मे, पुष्पो की हम शान;
जीवनभर सौरभ फैलाकर गाये तव गुणगान
मेरे अच्छे भगवान, दे दे ऐसा वरदान
मेरे अच्छे भगवान
मात-पिता और गुरूजी को हम पूजे देव समान
विश्व बंधुता , मानव सेवा सब से हो मुस्कान
मेरे अच्छे भगवान, दे दे ऐसा वरदान
मेरे अच्छे भगवान
बोले मुह शुभ, देखे नैंयन शुभ और सुने शुभ कान
पैर हमारे ठहरे मंदिर , संत समागम स्थान
मेरे अच्छे भगवान, दे दे ऐसा वरदान
मेरे अच्छे भगवान
दिग दिगंत है तेरी महिमा , मुखरित हिन्दूस्तान

अक्षर
हम को ले ले गोद मे , हम तेरी संतान
मेरे अच्छे भगवान, दे दे ऐसा वरदान
मेरे अच्छे भगवान, दे दे ऐसा वरदान
मेरे अच्छे भगवान

स्त्रोत्र : http://swaminarayan.org/publications/audio/anandrang.htm

Saturday, June 16, 2007

आओ देखे ख्वाब ...

अक्सर
मैं खोया रहता हूँ

कुछ अनजाने ख्वाबो में
और बनाता रहता हूँ
अपनी जिन्दगी का फसाना
यही तो ख्वाब है
जो सिखाते है इन्सान को जीना
यही तो है जो बने
बुनियाद हमारी खुशियों की
हमे चाहिऐ देखे हम ख़्वाब
अपने सुनहरे भविष्य के
मगर यहाँ आकर हम को है संभालना
maanaa हक है देखे हम ख्वाब
बनाए उस में आशियाना
और बटोरे
जमाने की सारी खुशियाँ
मगर ध्यान रहे
ख्वाब ,ख्वाब ही ना रह जाये
एक ज़रूरी काम अभी बाक़ी है
अभी तो यह ख्वाब है
इसका हक़ीकत बनना अभी बाक़ी है
और करना है इस के लिये बडाकाम
उपर वाला है हमेश ही
हमारी खुशियाँ चाहने वाला
और हमे राह दिखाने वाला
उसने रात बनाई हम देखे ख्वाब
और फिर हमको दिया दिन
पूरा कर लो अपना हर ख्वाब ...

--- अमित ०५/05/०५



काश ...

काश :
काश: , तू जान पाती
मेरी इस बेकरारी का आलम
समझ पाती मेरे दिल का हाल
तो जान पाती , कैसे तडपाती है
मुझको तुझसे एक पल की भी दूरी
दीवानों सा हाल रहता है जब तक ना पडे
कानो में मीठी आवाज़ तेरी
मिलती है जब तेरी नज़रों से नज़रे मेरी
उठती है एक प्यार की लहर दिल मे मेरी
सच बड़ी चोर हो तुम
जानती नही हो तुम
क्या कये किया है तुमने चोरी
मेरा चैन गया
मेरा दिल गया
और तो और
नींदे तक चुरा ली तुमने मेरी
अब तो इन्तहा है हो गई
मेरी बेकरारी की ,मेरी दीवानगी की
है तुम से गुज़ारिश मेरी
आ मेरे करीब
रख दिल पर हाथ मेरे
और कर दे ख़त्म ये बेकरारी मेरी ...
--- अमित १८/०६/०५

गर्म चांदनी ...

आज जो हो रहा, ऐसा पहले तो ना हुआ
आज चांदनी रात है,
और ना जाने क्यों चांदनी जला रही मुझे,
ठण्डी हवा बह रही
और लू की मानिंद झुलसा रही मुझे ,
दिल पर मेरे बेचैनी है छाई
और इन आंखों को जैसे
नींद से दोस्ती बिल्कुल ना भायी,
ना जाने क्यों आज
चांदनी झुलसा रही मुझे,
शायद , ये तेरी यादें हैं
जो रह रह कर तडपा रही मुझे,
चांद में दिखता तेरा चेहरा
दूर से ही खिजा रहा मुझे,
तुझे क्या पता , क्या क्या इस दिल पर बीती है,
तेरी जुदाई में
घड़ियाँ भी सदियों में बीती है,
कहॉ है,
क्यों है तू दूर मुझसे ,
चली आ पास मेरे
काटे नही कटती तनहा
अब ज़िन्दगी मुझसे ...
--- अमित २६/०६/०५

Wednesday, June 13, 2007

आज ...

रोज़ मेरा आज आता मेरे सामने
और करता सवाल मुझसे ,
किया क्या आज ऐसा तूने
कह सके तू जिसे सार्थक
और जिस के लिये मिला तुझे मानव जन्म,
और मैं पड़ जाता सोच में
जुटाता दिन भर का ब्यौरा
और करता मुल्यांकन उनका ,
तब लगता
दिन यों ही व्यर्थ गया ,
किया नही आज कुछ ऐसा
जिसके लिये मिल यह जन्म ,
हमेशा लगता मुझे
और अच्छा कर सकता था मैं,
फिर क्यों ना कर सका ऐसा मैं
कदाचित यह मेरे आलस्य था
जिस में मैं जकडा था
और स्वतंत्र होने का प्रयास भी ना किया,
तब समय /आज देता साहस और कहता
सो गया है तेरे अन्दर का विश्वास
जगा इस विश्वास को और जुट जी जान से
फिर देखना वो ही होगा जो तू चाहेगा
तेरा मार्ग स्वम तेरे कदमो तले आजायेगा ...
--- अमित २८/०४/०५

नज़रिया ...

देखिए साहब
नज़रिया, है यह
साबका अपना-अपना होता है,
जो हमको पसंद आया
वो एक आंख ना उनको भाता है,
जिद्द होती है साथ चले
और बाहर निकले तो
हर दम रूठना मनाना होता है,
यह रूठना मनाना कुछ और नही
करीब आने का बहाना होता है,
वैसे भी
इस रूठने मनाने का मज़ा
कहीँ और कहॉ आना होता है,
कितना भी रूठे ; कितना भी झगडे
शाम का खाना साथ ही होना होता है,
जब देखे इस को ज़माना
तो वो भी बस कहता है
बस इसी का नाम "याराना" होता है ...
--- अमित १३/०६/०७

इतना टूटा हुआ हूँ ...

अभी टूट कर बिखरने वाला था
कि आया कोई जिन्दगी में और
दिया मुझे अपना सहारा
और थामा मुझे अपनी बाहों में,
मुझको भी लगा जैसे मिल गया कोई अपना
जो ना देगा मुझे बिखरने ,
मगर ना जाने क्यों
"किसी को" मेरी खुशियाँ बर्दाश्त नही
और फिर आगए
एक ख़ुशी के बदले हज़ार ग़म मुझको तडपाने,
अभी तो मैं संभला ही था और
मेरा सहारा ही मुझे छोड़ गया,
पूछता हूँ मैं उससे इक सवाल
क्यों करता है "वो" ऐसा मेरे साथ,
कब मैंने उस से कोई दुआ मांगी थी
या कोई शिकवा किया था,
फिर क्यों भेजा उसने ऐसा रहनुमा
जिस ने मरहम रख फिर ज़ख्मो को हरा किया,
मुझे बिखरना मंज़ूर है
एक बार ही सब गमो को गले लगाना मंज़ूर है ,
मगर मैं बर्दाश्त नही कर सकता
यों रोज़ रोज़
तिल तिल कर घुट घुट मरना,
अब मेरे यह हालात है
अब मैं इतना टूटा हुआ हूँ
कि कोई मुझे छुए भर
और मैं टूट कर बिखर जाऊं ...
--- अमित १६ /०५/०५

Sunday, June 10, 2007

कल्पना ...

सोचा है तुमने कभी
है सब से तेज़ रफ़्तार किसकी ,
कुछ और नही
बस मन की कल्पना है,
हैं सब से तेज़ रफ़्तार जिसकी,
कल्पनाए ही तो वो
जो बनाती हमे भार शून॒य
और करती सैर
अनंत आकाश की,
कभी कल्पना की उडान लेती
चांद की दिशा
और बनाती
खुशियों का वहाँ ये आशियाना
यह ही वो कल्पना है जो
तुम से दूर रहने पर भी
दूरियों को मिटती है
और तेरे करीब होने का
हर पल मुझको अहसास कराती है
ग़र यह कल्पना ना होती
तो शायरों की शायरी में यह बात ना होती
और जहान की खुबसुरती
ना यों ब-खूबी बयां होती
चाहता हूँ मैं तो बस
कल्पनाओं पर सवार रहना
यह ही तो है वोह
जो कराती है हर सपना पूरा...
--- अमित ०५/०४/०५

क्या हुआ मेरे साथ ...

बाद अर्से के फिर मैं बैठा
लेकर कलम हाथ में
चाहा कि लिखू आज कुछ मैं,
मगर ना जाने कलम क्यों चलती नही
मेरे शब्द बनते नही
और मन साथ देता नही,
ऐसा पहले तो कभी ना हुआ
मैं कलम लेकर बैठा और कुछ ना बना
अचानक आज ये क्या हुआ
क्यों मन ने कलम का दामन छौड दिया ,
वषों का साथ पल में कैसे छूट गया
टूटी दिल के उमंगें
और कलम हाथ से छूट गया,
मेरी शायरी मेरे काम ना आई
धरी रह गई कागज़, कलम, रोशनाई ,
ऐसा तो बस पहली बार हुआ
मेरी जिन्दगी में जब से तू आई
मेरी शक्सियत पर है बस तू छाई,
तेरी महोबत का है यह इनाम
दुनिया ने दिया है मजनू का नाम,
इतना होने पर भी हिम्मत ना हमने हारी है
आज हारे तो क्या हुआ , आखरी जीत हमारी है,
तुझसे वादा है मेरा जो निभाऊंगा
इक दिन तेरे रुप पर एक मुकमल ग़ज़ल बनाऊँगा ...


--- अमित २७/०३/०५

तेरा रुप ...

चाहा बहुत कभी लिंखू
तेरे रुप पर मैं
कि मगर जितनी भी कोशिशे
और उल्हज़्ता ही गया मैं,
कभी लगती मुझको दूर बड़ी
फिर लगता जैसे मेरे पास खडी
कभी लगता तुम हो ऐसी
फिर लगता तुम हो वैसी
कभी लगती परी सी
तो कभी अप्सरा सी,
और क्यों ना हो ऐसा
दुनिया में तेरे रुप का सानी कोई नही
और मेरा यह कहना
कोई बेमानी नही,
तेरा एक एक अंग
खुदा ने जैसे अपने हाथ से बनाया
जिसे देख, चौहदवीं का चांद भी शरमाया
तेरी एक भी मिसाल मुझसे ना बन पडी
और मैंने जाना , यह काम है मुश्किल बड़ी,
ज़ुल्फ़ों को तेरी क्या कहे, काले नाग भी इन से पीछे रहे
क्या तेरी भौंहो को कहे , कमान से भी आगे जो रहे
ये तेरे होंठ , ये दो गुलाबी कमल है
ये दो पंखुरियां, खुद मुकम्मल ग़ज़ल है,
दिल की खुबसुरती भी तुने पाई
मन में तेरे चंदन कि शीतलता
और बदन में हिरनी की चंचलता
सूरज की सी आभा तेरे चहरे में आई
नादान बालक की सी मुस्कान भी तुने पाई,
कोई मुझे बतलाए
करु क्या मैं जा कर मैखाना
उसकी दो आँखें खुद ही है पैमाना
जाम जो इन आंखों के पिए
ज़न्नत में वो जिए ,
तुझे तो पता है , किस कि मैंने आस लगाई
यह प्यार की जौंत सिर्फ तेरे लिये जगाई
मुझे तू ही बता, अब तेरे बिन कैसे जिए ...


--- अमित २९/०३/०५

Saturday, June 9, 2007

जब भी याद आया ...

जब भी याद आया,
बस वोही याद आया.
मिले थे जब तुम से हम,
वोही लम्हा, वोही मंज़र याद आया.
वो दो अजनबी आंखों का,
टकराना याद आया.
शर्मा कर उनका झुकना,
फिर देखने कि हसरत से;
वो उनका उठना याद आया.
सीने में बेताब धड़कता दिल
और दिल मे उभरते,
ज़ज्बातों का सैलाब याद आया.
दिल मे होती उस मीठी गुदगुदी,
का एहसास याद आया.
रह रह कर तेरे लबों पर,
धीमी से मुस्कान का आना याद आया.
जो कभी ना कही गई लफ़्ज़ों से,
आंखों से उन बातों का कहा जाना याद आया,
माँग ले खुदा से दुआ में बस तुम को,
मेरे दिल में तब हर येही ख़याल आया.
तुमे हो ना हो; हमे तो
पहली मुलाक़ात का हर लम्हा लम्हा रोज याद आया ...
--- अमित

गुस्ताखी...

खतावार हैं तुम्हरी
यह गुस्ताख निगाहें मेरी,
देखती हैं यह चोरी चोरी
हर एक अदा तेरी
तेरे रुप की करना चोरी
यह ही तो आदत है , इन निगाहो कि मेरी
मगर कसूर , इनका भी कुछ नही
सूरत ही इतनी प्यारी है तेरी
कहना तो चाहता हू में बहुत कुछ
पर सहारा ही नही देती
यह बेबस जुबान मेरी
गुस्ताखी बस इतनी ही है
इन निगाहो कि मेरी
कहना चहाती यह तुझसे
वोह सुब कुछ
जो कह ना सकी तुझसे
जुबान मेरी
अब पेशी तो तेरे दरबार में है मेरी
देखना है, होती है क्या मुझ पर
नज़रें करम तेरी
यकीन है मुझको
हो ना हो, तुझे भी कुबूल है
यह गुस्ताखी मेरी...

--- अमित २१/०४/०५

Wednesday, June 6, 2007

फिर आई उसकी याद ...

बाद अर्से के
फिर आई उसकी याद,
बता रही है आँखें मेरी
कहानी बीती रात की,
अभी तो हमने मिलन के
सपने संजोए भी ना थे ,
चिर निन्द्रा सी आंखों मे
आ बसी ये जालिम यादें,
चाहा तो दोनो ने ही दिल से था
इकरार भी दिलों का दिल से था,
किये थे सजदे खुदा के भी
माँगा भी दुआओं में दिल से था,
ना जाने क्यों खुदा को
हमारी मोह्बत ना रास आई,
और उसने जुदाई
हमारी तकदीर बनाई,
छिना तेरा दामन उसने मेरे हाथ से
और किये हमेशा को जुदा तेरे मेरे रास्ते ,
और दे दी तद्पाने को
वोह प्यार भरी यादें ,
सूख चुके थे अब तो सारे आंशु
और थक चुकी थी मेरी आँखें ,
दफ़न हो गए थे सारे अरमान
अधूरी रह गई सारी खवाहिशे
और रूठ गई थी मुझसे सारी खुशियाँ
तेरे जुदा होने से ,
फिर भी ना जाने क्यों
आज फिर आई तेरी याद,
मैं तो आज फिर दुआ को हाथ उठाता हूँ
खुदा से और कुछ नही
सिर्फ तेरी खुशियाँ माँगता हूँ ...


--- अमित २०/०३/०५

Tuesday, June 5, 2007

तुम सा हसीं ...

दुनिया में मुझसा खुशनसीब और नही
क्यों ना हो मुझे इस का गुमान,
दिलबर तो सबके हैं
तुमसा हसीं कोई नही
तुम से अदा , तुम सी शोखी
और किसी में कहीँ नही,
सच तो यह है दुनिया में
तेरा सानी कोई नही,
जनता हूँ
रंज करते है ये सारे हसीं
तुझ सी मासूमी जो इन में नही
हर दम जलता है इनका सीना
क्योंकि तुम हो
हुस्न का इक तराशा नगीना,
संकडौ दिल वाले फिरते हैं दिल को थामे
चाह हर इक कि ; अपनी भी किस्मत आज्माले,
हम से वोह खुशनसीब कहॉ
जिन पर यह इनाय्ते करम होती,
अपना हो जिन्दगी का खवाब पूरा हुआ
दुनिया का सब से हसीं
जिन्दगी का रहबर हमारी हुआ ...


--- अमित १६/०३/०५

यह दिल ...

लाख समझाया इसको
पागल फिर भी माने ना,
लाख मनाया इसको
यह दिल फिर भी माने ना,
तेरे लिये यह बेताब बड़ा
क्यों यह बेताबी तू पहचाने ना,
तुझको यह चाहे कितना
खुद भी यह जाने ना,
करता तुझ को इशारे
क्यों यह इशारे तू पहचाने ना,
कये छिपा हर इशारे में
इतना भी क्या तू जाने ना,
धड़कता है बस तेरे लिये
बात कोई यह जाने ना,
पाना यह बस तुम को चाहे
क्यों बात तू इस कि मने ना,
यह बेज़ुबान बेबस बड़ा
बेबसी इसकी क्यों तू माने ना,
धड़कन कहीँ इस की रूक जाये ना
इस से पहले तू इस को अपना लेना ...
--- अमित १२/०१/०५

बरसात ...




जब भी होती वर्षा
धुल जाता सब कुछ
और
आ जाती नई चमक
लगता सब कुछ सुंदर
लगता सब कुछ
अच्छा
क्यों ना हुआ फिर मेरा साथ

मेरे आशुँओं कि बरसात से

क्यों ना हुआ मन उसका हल्का

क्यों ना धुला बैर उसके मन का


--- अमित ०५/०६/०७







Sunday, June 3, 2007

सफाई ...

पहले सोचा
जाकर उसको बोल दूं,
फिर ख्याल आया
कहीँ वो समझे
मैंने सफाई दी,
सच ही तो था
मेरे जीवन कि किताब
उसने इतनी पास रखी
कि , उसकी लिखाई उसको दिखाई ना दीं ....


--- अमित ०३/०६/०७

जानँ हमारी ...

आज फिर हुए बे-आबरू
आज फिर हुए रुसवा
फिर टूटा दिल और
आँखें हुई नम,
कौन समझेगा दिल कि बातें
ज़ुबां जब उनको समझ ना आई ,
भरोसा क्या करे
किस का करे यकीन ,
वो जो थे दिल के मेहमान
वोह ही जब निकले रकीब,
निकले थे ऐसे उनके कुचे से हम
निकलता है जैसे जनाज़ा कोई,
जानँ है वो हमारी
और जान से भी जयादा
प्यारी है हमे "जानँ" हमारी ,
जाकर कह दे कोई
दे दी होती जान इस रुसवाई पर
डर था मगर
रह जायेगी अकेली
जालिम इस ज़माने में "जानँ" हमारी...
--- अमित १७/०१/०७