Thursday, May 31, 2007

वोह आँखें ...




प्यारी थी मगर ,
बहुत सहमी थी वोह आँखें ,
ज़ुबां सिली थी मगर
बहुत कुछ बोलती थी वोह आँखें,
साफ झलक पड़ता था
दर्द सीने का, उन आंखों में
बेबसी तो जैसे ,
ठहर गई थी उस चहरे
और आस के एक हलकी सी किरण
की तालाश में
पथरा चुकी थी वोह आँखें ,
अफ़सोस
दूर तलक दो हाथ भी ना थे
जो देते सहारा उसे ,
आख़िर हुआ वही जो होना था,
छीन गया था उससे
बचपन उसका ,
अब कुछ और नही था
वह नन्हा मासूम
दुनिया के हाथों का बस एक खेलौना था

--- अमित २१/०४/०५

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