Wednesday, May 2, 2007

सितमगर...

रूठे हुए है वोह; हमसे
ना जाने किस बात पर,
कहते हैं हमे जालिम
वोह बात बात पर,
यों ही ढ़हाते हैं सितम
वो बात बात पर,
उनका रूठना तो इक अदा ठहरी
जानते नही वोह ,
निकल जाती हैं; जान इस से हमारी,
जानता हूँ रूठना तो
हुस्न कि इक अदा,
आशिक को तद्पाने में
आता इनको बड़ा मज़ा हैं,
ढ़ूंनढ़तां है यह
इश्क को जलाने के बहाने,
हम भी मगर इश्क हैं
ऐसे पीछा ना छोड़े गे ,
तुम्हारे लिये दुनिया से क्या
खुदा से भी मुँह मोड लेंगे ,
तुम्हारे सितम , ये ना काम कुछ आएंगे
जिधर भी तुम जाओगे; बस हम नज़र आयेंगे...
--- अमित २०/०४/०५

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