वोह पेड,
खड़ा था
सड़क के कनारे
सड़क के कनारे
अकेला,
पास ना था कोई साथी,
पूरा बढ़ चूका था,
अपनी कोशिशों के बाद
और था तत्पर
देने को
देने को
अपनी छावं,
हमेशा से
आकर्षित किया उसने
ना जाने क्यों,
फिर भी कभी
पास ना गया उसके
और दूर से ही
देखा किया उसको
सोचा उसके बारे में,
फिरआज
क्यों लेगा ऐसा
क्यों लेगा ऐसा
जाओ वहाँ और बैठू
उसकी छावं में
और करु कुछ बात...
अमित --- २९/०५/२००७
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