Wednesday, May 30, 2007

इरादा-ए-यार ...

कयामत होने वाली है
इरादा-ए-यार अच्छा नही आज,
संभल-ए- मेरे दिल
इरादा-ए-यार अच्छा नही आज,
निकले है वो बे-नकाब
छिपा फिरता है महताब घाटों में आज
हुस्न-ए-यार का नही कोई सानी आज,
संभल-ए- मेरे दिल
इरादा-ए-यार अच्छा नही आज,
ठण्डी हवा भी महकना चाहती
इस लिये छूती वो जिस्म-ए-यार आज,
उसके बदन से उठती सिर्हन
करती दिल को बे-करार आज,
संभल-ए- मेरे दिल
इरादा-ए-यार अच्छा नही आज,
चांदनी भी मन्द पड़ती
गोरे बदन के आगे आज,
क़त्ल तो अपना मुक़र्रर है
कज़ा सामने खडी है अपने आज,
संभल-ए- मेरे दिल
इरादा-ए-यार अच्छा नही आज,
ग़र यही हसीं मंज़र है;मेरे क़त्ल का
तो कोई शिकवा नही,
खुदाया; तू क़त्ल करवा
हज़ारों हज़ार बार मुझको आज,
संभल-ए- मेरे दिल
इरादा-ए-यार अच्छा नही आज,
वो निकले है बे-नकाब आज
--- अमित १७/१२/04

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