Saturday, May 5, 2007

उसकी गली ...

जादू सा कुछ होने लगता है,
गुजरते है जब भी; उसकी गली से हम
कदम कुछ रुके रुके से उठते है
साँसे कुछ भारी भारी चलती है
और दिल
यह तो पागल है ; रहता है बेचैन बड़ा,
गुजरते है जब भी; उसकी गली से हम
चहाते है ना गुजरे, उसकी गली से हम
कशिश कुछ उनमे ऐसी है
चल पड़ते है खुद; उसकी गली को हम
जादू सा है कुछ; उसकी बातों में
बिन डोर खीचे, हम जाते हैं
होश हवाश रहता नही
पता अपना भूल जाते हैं
गुजरते है जब भी; उसकी गली से हम
रहता है याद बस
उनके ही घर का रास्ता,
दीवानों सी हालत होती है
गुजरते है जब भी; उसकी गली से हम
बताते है; मुझको मेरे दोस्त
बेद्ब्दाते हैं नाम उसका,
सोते है आकर, जब भी उसकी गली से हम
ए दिल
वोह भी जालिम है बडे
लेते है मज़ा हमारा
गुजरते है जब भी; उसकी गली से हम
--- अमित ०५/०५/०५

No comments: