Thursday, May 31, 2007

मेरी ज़ुबां ...

हमेशा से ही मैं ज़रा
खामोश सा रहा,
अपने दिल कि बातों को
लोगो से कम ही कहा ,
जहाँ भी आया मोका
ज़ज्बात बयां करने का,
मैं हमेशा पीछे ही रहा,
मेरी जुबान से जायदा
मेरी कलम मेरा सहारा रही,
और मेरे ज़ज्बातों की
कागज़ - कलम से हमेशा अच्छी बनी ,
कागज़ के दिल ने दिया
उनको एक उंचा मुकाम ,
और दुनिया ने दिया
इन ज़ज्बातों को शायरी का नाम ,
शायरी कोई पेशा नही
यह तो बस एक ज़रया बनी,
जिस से मेरे ज़ज्बातों की
दुनिया में कुछ पहचान बनी ।

--- अमित ०६/०४/०५

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