मेरी कविताओं,
सोचता हूँ मैं
कभी कभी ,
सोचता हूँ मैं
कभी कभी ,
ना जाने कितना निष्ठुर
लगता हूँ तुम को मैं,
सोचती हो तुम पागल है यह ,
लगता हूँ तुम को मैं,
सोचती हो तुम पागल है यह ,
जो बिगाड़ रहा
तुम्हारा सवरूप
ना जाने क्या सोचता
ना जाने क्या लिखता
और खुश होता,
जैसे कितना अच॒छा लिखा
मगर जानता नही
किया है खिलवाड़ तुम्हारे सोंदेर्य से,
तुम्हारा सवरूप
ना जाने क्या सोचता
ना जाने क्या लिखता
और खुश होता,
जैसे कितना अच॒छा लिखा
मगर जानता नही
किया है खिलवाड़ तुम्हारे सोंदेर्य से,
जानती तुम भी नही
मैंने तो सदा अच॒छा ही प्रयास किया ,
जैसे कोई नादान बच्चा
कुछ नया बनाता
और अपनी अबोधता से
जैसे कोई नादान बच्चा
कुछ नया बनाता
और अपनी अबोधता से
देता बिगाड़ रुप उसका ,
परंतु यही प्रयास एक दिन रंग लाता
और देता सोंदेर्य को नया आयाम
मैं भी वोही अबोध बालक हूँ,
मेरा भी तुम को वचन है ,
मेरा भी तुम को वचन है ,
दूंगा एक दिन तुमको नया रुप,
नया सोंदेर्य
नया सोंदेर्य
और नयी तरह से परिभाषित करुंगा तुम को,
तब तक तुमको धर्य रखना होगा
मुझको वचन दो,
जो भी हो
अंत तक तुम को मेरा
तब तक तुमको धर्य रखना होगा
मुझको वचन दो,
जो भी हो
अंत तक तुम को मेरा
साथ निभाना होगा...
--- अमित १६/०३/०५
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