Tuesday, May 29, 2007

जाने क्या चाहता हूँ मैं ...

ए जिन्दगी ,
ना जाने क्या चाहता हूँ मैं
कभी तुझसे ज़फा
तो कभी वफ़ा चाहता हूँ मैं,
सपनो में तो बहुत जिया हैं
हक़ीकत में भी तुझे जीना चाहता हूँ मैं,
हर मोड पर हारा ही हूँ मैं
ना जाने क्यों तुझसे जीत जाना चाहता हूँ मैं,
कभी किसी से की नही मोह्बत
पर तेरे इश्क में डूब जाना चाहता हूँ मैं,
हर पल चली तू मुझसे आगे
तुझसे कदम मिलाकर चलना चाहता हूँ मैं,
गमो से तो बहुत खेला हूँ मैं
चन्द खुशियाँ भी पाना चाहता हूँ मैं,
दुश्मन तो ज़हान में किसी के कम नही
सब को अपना दोस्त बनाना चाहता हूँ मैं,
मरते है सभी गुमनामी कि मौत
ज़हान में रोशन करना अपना नाम चाहता हूँ मैं,
मिला है जनम कुछ करने को
जितना हो सके कर गुज़ारना चाहता हूँ मैं,
हज़ार ख्वाहिशे है दिल में
तुझे क्या क्या बतलाओं, क्या चाहता हूँ मैं,
बस तू साथ रह मेरे और देख
सितारों के आगे ज़हान बसाना चाहता हूँ मैं...

---- अमित १८/०७/05

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