दो जिस्म एक जान है हम
यही तो कहा था तुमने
सच ही है क्या गलत कहा था तुमने
हम दो जिस्म एक जान ही है
तभी तो होता है
एक जिस्म का दर्द
जान से होकर दुसरे में जाता है
कहता मैं कुछ हूँ
जान कुछ समझती है
और दुसरे जिस्म तक जाते उसका रुप ही बदला जाता है
जान ही तो एक है हमारी
मस्तिष्क तो दोनो जिस्मो के हिस्से में अपना अपना आता है
और जब यह काम करता है तो
ऐसा क्यों लगता दोनो जिस्मो में से जान को जुदा कर जाता है ...
- अमित २९/०७/०७
1 comment:
अमित जी,रचना बढिया है।बधाई।
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