Wednesday, July 25, 2007

दोस्त की मृत्यु ...

सुना बारे में उसके
मगर विश्ववास ना हुआ
देखा जब आंखों से
यकीन तव भी ना हुआ
भरा जब उसे बाहों में
तव भी लगा
नही , ऐसा कुछ ना हुआ
और ऐसा हो भी कैसे सकता था
वो, जो मेरी बाहों में था
मेरा दोस्त था और
कुछ देर पहले
सब कुछ ठीक था
और पल भर में
ये क्या हो गया
वो हम को छोड कर चला गया
लगा मैं कोई सपना देख रहा
काश ,
काश , ऐसा ही होता
यह एक सपना ही होता
तो वो जिस्म
जो मेरी बाहों में बेजान पडा था
मेरी बाँहों में हो , मेरे साथ होता
अफ़सोस , ऐसा कुछ ना हुआ
सच , बडा दुःख भरा था वो समय
जब यह सब हुआ
"विवेक " की मृत्यु सब को झकझोर दिया
बडा ही मुश्किल होता है वोह पल
जब छुट जाता है कोई अपना
और रह जाती है कुछ मुट्ठी भर यादें
हमे कभी कुछ याद कर ह्साने
और तन्हाई में जा कर
कुछ आंसुओं को बहाने ...

( अपने दोस्त विवेक की मृत्यु पर )
--- अमित १४/०५/०५

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