Tuesday, July 24, 2007

जानता हूँ मैं ...

क्या सोचती तो तुम
पता नही चलेगा, ग़र कहोगी नही तुम
जानता हूँ , चाहती हो मुझे
तेरी आंखों की शरारत
तेरे होंठों की मुस्कराहट
तेरे दिल की कसक
सब है पता मुझे
मगर चाहती हो तुम छुपाना
दिन कटता है हमारे साथ
और गुजर जाती है रात कर के हमेयाद
नींद तो तुम्हे अब आती नही
रहती हो ख्यालो में दिन रात
नही रह पाती हो दूर हम से
छुपा नही है अब यह राज़
दिल बेचैन , बेताब धड़कन और प्यासी नज़र
करती हैं अब बस हमारा इंतज़ार
तुम्हारा पहला प्यार हूँ मैं
और हूँ जिन्दगी से भी प्यारा
छौड दोगे ज़माना ,ग़र हो जाऊं तुम्हारा
जानता हूँ तेरे दिल की इक इक बात
जानती तुम नही
है अपना भी यही हाल
तुम को भी है यह एहसास
चाहती हो करु पहले मैं इकरार
हाँ, यह भी जानता हूँ मैं
चाहता हूँ अभी लेना तेरी तड़प का मज़ा
इस लिए अब तक चुप मैं रहा
अब मगर दूरी नही सही जाती है
तुम कहो या ना, जुबां मेरी कहना चाहती है
हाँ,
हाँ, हमे महौबत है ...
--- अमित २०/०५/०५

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