Thursday, July 12, 2007

जा रही है तू ...

तुझे जाना है
मालूम था मुझे
तू जा रही है
मालूम है मुझे
मगर याद आ रही है मुझे
मुझसे कही तेरी हर बात
तेरे साथ गुजारा हर लम्हा
और तेरी बेपन्हा मोहबत
साथ ही तड़पा रही है
तुझ से होने वाली जुदाई
हाँ , स्वार्थी ही हूँ मैं
और हूँ भी क्यों ना
दिया हैं तुने मुझे कितना अनमोल एहसास
खोना जिस को आता नाही
ख्यालों मे भी मेरे पास
सोचते ही तुझसे दूरी का
निकल जाती है मेरी जान
लगती है वीरान यह दुनिया
और बेमानी सा यह जहान
कहॉ था मैं , एक अच्छा इन्सान
कहॉ था मैं , तेरे काबिल
की तुने बेपन्हा मोहबत
और बनाया मुझे इक इन्सान
अब जा रही है तू
लगता है मर रहा है वोह इन्सान
ना जा , रूक जा तू
तुझे तो पता है
तुझ में ही बसी है मेरी जान
ग़र हो गई तू दूर मुझसे
निकल जायेगी
मेरे जिस्म से मेरी जान ...
---- अमित २५/०६/०५

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