राहे जिन्दगी में
ना जाने कितनी बार
लडखडाओगे तुम
ना जाने कितनी बार
गिरोगे तुम
कोई गम , कोई फिक्र
ना तुम को इस से आने पाए
जब भी लडखडाओ
और अधिक ताक़त अपने पैरों में लाओ
जब भी गिरो तुम
और लड़ने की लगन जगाओ तुम
तुम गिरे तो कोई गम नही , कोई हार नही
मन का विश्वास ना गिरने दो तुम
उम्मीदे ना अपनी कम होने दो तुम
जो विश्वास ना डग्मगायेगा
तो कोई मुश्किल
तो कोई मुश्किल
कोई परेशानी
क्यों ना तुम्हारे सामने आये
दूर तुम्हारे विश्वास से बस पल में हो जाये
ग़र मन में हो विश्वास मंज़िल पाने का
और हो उम्मीद जीत जाने की
तो बस देखना तुम
रास्ते खुद-ब-खुद बन जायेगे
और मंज़िल तुम्हे मिल जायेगी ...
--- अमित २८/०५/०५
3 comments:
बढ़िया लिखा है. एक साल का बच्चा जब चलना सीखता है तो वह उठता गिरता चलता है और उसे तो गिरने में भी मजा आता है!
amiot very nice poem and get yourself registerd on chittajagat
ग़र मन में हो विश्वास मंज़िल पाने का
और हो उम्मीद जीत जाने की
तो बस देखना तुम
रास्ते खुद-ब-खुद बन जायेगे
और मंज़िल तुम्हे मिल जायेगी ...
yahi jeevan ka mul mantra hai
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