क्या, इस दुनिया में
धोखा, फरेब और
दुसरे का दिल तोड़ , खुश होना
बस, यही काम रह गया है इन्सान का
क्या बस, यही रह गई है इंसानियत
एक समय था जब
चोट मुझको लगती थी
और दर्द मेरे साथी को होता था
उसके घर में गम होता था
और चूल्हा मेरा ठण्डा सोता था
एक की जान में दुसरे की जान
एक के दिल में दूजे का दिल रहता था
मगर आज इन्सान को यह क्या हो गया
खुद ही दिल का दर्द बना है
उस पर झूटी हमदर्दी का
मरहम कर रहा
ग़र यही दुनिया , यही इनानियत है तो
ग़र यही दुनिया , यही इनानियत है तो
मैं एक पल भी साथ ना इसका चाहुगा
कल का जाता इस दुनिया से
साथ आज ही इसका छोर जाऊँगा ...
--- अमित १०/०४/०५
3 comments:
ऐसे मायूस न हों. अभी भी बहुत कुछ बाकी है, सब खतम नहीं हुआ है. आप स्वयं एक नव सृजन करें, सब छोड़ जायेंगे तो वाकई कुछ न बचेगा. आप से उम्मीदें हैं. शुभकामनायें.
"कुछ सपनों के मर जाने से, इन्सान नहीं मरा करते हैं."
वक्त पर न जा वक्त एक जैसा है,
कर मेहनत फ़िर देख वक्त अपने जैसा है...
असफ़लता ही तो सफ़लता की कुंजी है...आप निराश क्यों है? बहुत अच्छा लिखा है और लिखीये हमे इंतजार है आपकी अगली पोस्ट का...
सुनीता(शानू)
चोट तो आज भी पहुँचती आपके चोट से दूसरों को मगर दिशा अलग होता है दूसरों तलक चोट पहुँचने से पहले यह दर्द जो होता है आपके मित्र को उसके होने वाले दर्द से औरों को भी तकलीफ़ होने लगती है…।
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