Tuesday, July 31, 2007

बचपन ...

उड़ता था मन मेरा तब


मेरी किताब के कागज़ के जहाज़ पर


लेती थी हिचकोले


जब चलती थी


वो कागज़ की कश्ती


बारिश के ठहरे पानी पर


डोर कहॉ किस के पास कभी थी


बिन डोर ही उड़ता था मन


इस उंचे अनंत आकाश पर


छोटी छोटी उन आंखों में


ना जाने कितने सपने थे


कल का सपना था क्या


ये किसको याद होता था


हर दिन देखे एक नया सपना


बस यही काम तो अपना होता था


सच ही तो है


बचपन को किसी से क्या मतलब होता है


उसको तो बस कल के दिन का इन्ज़ार है


कल उसको नया कुछ करना है ...
--- अमित २/०८/०५

Monday, July 30, 2007

तनहाईयां...

जब भी मैं उदास होता हूँ
और दुनिया से क्या अपने से भी भाग जाना चाहता हूँ
तव मैं बस तनहाईयां तलाशता हूँ
वहाँ जाकर आता है , मेरे दिल को करार
और मिलता है मेरी बेचैनी को आराम
माँ की गोद सी भाती है मुझे तन्हाई
आते ही जहाँ, दूर होती थकान
और आती जिस्म में नई जान
यो तो आते है और भी यहाँ
चन्द घड़ियाँ ही बस वो बताते यहाँ
और फिर खो जाते फिर इस दुनिया में
और नही सुन पाते अपने दिल की जुबान
मैं तो अक्सर आता यहाँ
करता घंटो अपने दिल से बात
मेरे दिल की आवाज़ मुझे सीखाती
कैसे इस दुनिया में है अपनी लडाई लड़ी जाती
कैसे बचाये जाते अपने नैतिक मुल्य
और कैसे बना जाता एक अच्छा इन्सान
हक़ीकत है , तन्हाई
कभी कभी बडा काम आती
और कुछ करे या ना करे
मुझे हमेशा ही जीने की नई राह दिखाती ...
--- अमित ०९/०४/०५

वो शख्स ...

देखा , आज सुबह
एक जाना पहचाना मगर अनजान चेहरा
देखकर जिस को ,
दो पल को समय जैसे ठ्हेरा
और याद आया
एक दिल अजीज़ शख्स
बडा ही जिंदा दिल
बडा खुश मिजाज़ , वो शख्स
जिंदा दिली इतनी की
जिन्दगी भी जीने का हुनर उससे सीखे
और खुश मिजाजी इतनी
खुशियाँ भी चन्द घड़िया उससे उधार मांगे
दुनिया को अपना बनाने की कला
भी बखूबी उसने पाई
अपना दिल उसको दे बैठा
हर एक शख्स , जो उसके करीब आया
मैं भी था खुश नसीब
मेरा भी कुछ नाता उनसे बन पाया
घड़ियाँ कब मगर एक सी घूमती है
वक़्त ने लिया एक दिन , बडा अजीब फेरा
और लगा गया हम सब की दिलो पर
आघात एक बडा ही गहरा
उस एक ख़बर ने
दिलों को सबके झकझोर दिया
हुई एक दुर्घटना
जिसमे उसने , जिन्दगी का दामन ही छोड़ दिया
घर से आती रोने की आवाज़
किसी से भी ना सही जाती थी
जहाँ दूर नज़र डालो
आंखों में बस नमी ही नज़र आती थी
कोई और नही
"शेलेंद्र भैया " ही थे वोह शख्स
जिनके जाने के गम मे सब रोये जाते थे
आज उनको गये अरसा हो गया
और हम सभी आज भी है उनकी यादें संजोये हुए ...
( अपने दोस्त के भाई की कार दुर्घटना में सपरिवार मृत्यु पर )
--- अमित ०४/०४/०५

Sunday, July 29, 2007

इन्सान ...

क्या, इस दुनिया में
धोखा, फरेब और
दुसरे का दिल तोड़ , खुश होना
बस, यही काम रह गया है इन्सान का
क्या बस, यही रह गई है इंसानियत
एक समय था जब
चोट मुझको लगती थी
और दर्द मेरे साथी को होता था
उसके घर में गम होता था
और चूल्हा मेरा ठण्डा सोता था
एक की जान में दुसरे की जान
एक के दिल में दूजे का दिल रहता था
मगर आज इन्सान को यह क्या हो गया
खुद ही दिल का दर्द बना है
उस पर झूटी हमदर्दी का
मरहम कर रहा
ग़र यही दुनिया , यही इनानियत है तो
मैं एक पल भी साथ ना इसका चाहुगा
कल का जाता इस दुनिया से
साथ आज ही इसका छोर जाऊँगा ...
--- अमित १०/०४/०५

सादगी ...

अब तक ना जाने
कितने लोग मेरी जिन्दगी में आये
किसी के लिये मैं ठहरा नही
मिला तो बहुतो से
दिल में इतना गहरा कोई उतरा नही
बातें तो सभी करते हैं
खरा कोई उतरा नही
देखा है मगर जबसे तुम्हे
ठहर गई है मेरी तालाश
तुझ सी सादगी, तुझ सा भोलापन
और कहीँ देखा नही
बनावट और देखावा
फरेब और छलावा
इन् शब्दों को जैसे
तुने कभी सुना ही नही
तेरी हर बात से झलकता
तेरे सुंदर मन का भोलापन
तू अच्छी है तो सब अच्छे है
ऐसा ही सदा तुमने माना
सबके लिये तेरे दिल मैं बस प्यार ही प्यार भरा
तेरी इसी अदा ने जीत लिया दिल साबका
मेरे दिल में तो बस तेरी ही तस्वीर बसी
जब दिल चाहता तेरी तस्वीर देख मैं इतराता
तू मेरे दिल का साथी है यह एह्साह सुकून बडा मुझे पहुँचता ...
--- अमित ०५/०५/०५

दो जिस्म एक जान ..

दो जिस्म एक जान है हम
यही तो कहा था तुमने
सच ही है क्या गलत कहा था तुमने
हम दो जिस्म एक जान ही है
तभी तो होता है
एक जिस्म का दर्द
जान से होकर दुसरे में जाता है
कहता मैं कुछ हूँ
जान कुछ समझती है
और दुसरे जिस्म तक जाते उसका रुप ही बदला जाता है
जान ही तो एक है हमारी
मस्तिष्क तो दोनो जिस्मो के हिस्से में अपना अपना आता है
और जब यह काम करता है तो
ऐसा क्यों लगता दोनो जिस्मो में से जान को जुदा कर जाता है ...
- अमित २९/०७/०७

जब प्यार किसी से होता है ...

क्यों होता है ऐसा

कोई अनजाना कभी कभी

लगता जान पहचाना
क्यों उठती हैं उमंगें

रह रह कर उस से मिलने की

क्यों रहता है दिल बेचैन

जा कर दूर उससे
आजाता है क्यों सुकून

करीब आकर उसके

क्यों लगती है राते लम्बी

और लगते है फिसलने दिन हाथों से

बातें चले औरो की

और ज़िक्र हो उसके

दिन भर रहा ना दूर उस से जाये

और रातों को भी नींद ना आये

हम जब भी सोये

तो आकर खावाबों में वो हमे जगाये

बैठे हो लिखने कुछ

और तस्वीर उसकी बन जाये

निकले हो हम अपने घर को

और पहुंच उसकी गली को जाये

नाम पूछा जाये हम से हमारा

और जुबां पर उसका नाम आये

जहाँ भी हम जाये, करीब ही उसको पाए

क्यों लगता है अपनी दुनिया

सिमटकर बस उसी पर ख़त्म हो जाये

हाँ , ऐसा ही सब कुछ होता है

जब प्यार किसी से होता है ...



--- अमित १४/०५/०५

Friday, July 27, 2007

मेरा रास्ता ...

ऐसा नही की मैं जानता नही

जो मैं लिखता हूँ , सब जानता हूँ मैं

क्या हुआ जो मेरे पास अच्छे शब्द नही

मेरी भावनाओ में कोई कमी नही

क्या हुआ जो मेरी सोच की जड़े गहरी नही

सोच मगर अपनी कहीँ ठहरी नही

निगाह है फलक पर मेरी और

पांव पड़ता है जमीन पर मेरा

बैर किसी से नही है मेरा
खुद का खुद से ही है वास्ता
दम अभी नही है किसी में
जो रोक सके मेरा रास्ता
चन्द घड़िया ज़रा बस रुका हूँ मैं
तय करना है मुझे अभी बहुत लम्बा रास्ता ...
--- अमित २८/०७/०७


Wednesday, July 25, 2007

दोस्त की मृत्यु ...

सुना बारे में उसके
मगर विश्ववास ना हुआ
देखा जब आंखों से
यकीन तव भी ना हुआ
भरा जब उसे बाहों में
तव भी लगा
नही , ऐसा कुछ ना हुआ
और ऐसा हो भी कैसे सकता था
वो, जो मेरी बाहों में था
मेरा दोस्त था और
कुछ देर पहले
सब कुछ ठीक था
और पल भर में
ये क्या हो गया
वो हम को छोड कर चला गया
लगा मैं कोई सपना देख रहा
काश ,
काश , ऐसा ही होता
यह एक सपना ही होता
तो वो जिस्म
जो मेरी बाहों में बेजान पडा था
मेरी बाँहों में हो , मेरे साथ होता
अफ़सोस , ऐसा कुछ ना हुआ
सच , बडा दुःख भरा था वो समय
जब यह सब हुआ
"विवेक " की मृत्यु सब को झकझोर दिया
बडा ही मुश्किल होता है वोह पल
जब छुट जाता है कोई अपना
और रह जाती है कुछ मुट्ठी भर यादें
हमे कभी कुछ याद कर ह्साने
और तन्हाई में जा कर
कुछ आंसुओं को बहाने ...

( अपने दोस्त विवेक की मृत्यु पर )
--- अमित १४/०५/०५

Tuesday, July 24, 2007

जानता हूँ मैं ...

क्या सोचती तो तुम
पता नही चलेगा, ग़र कहोगी नही तुम
जानता हूँ , चाहती हो मुझे
तेरी आंखों की शरारत
तेरे होंठों की मुस्कराहट
तेरे दिल की कसक
सब है पता मुझे
मगर चाहती हो तुम छुपाना
दिन कटता है हमारे साथ
और गुजर जाती है रात कर के हमेयाद
नींद तो तुम्हे अब आती नही
रहती हो ख्यालो में दिन रात
नही रह पाती हो दूर हम से
छुपा नही है अब यह राज़
दिल बेचैन , बेताब धड़कन और प्यासी नज़र
करती हैं अब बस हमारा इंतज़ार
तुम्हारा पहला प्यार हूँ मैं
और हूँ जिन्दगी से भी प्यारा
छौड दोगे ज़माना ,ग़र हो जाऊं तुम्हारा
जानता हूँ तेरे दिल की इक इक बात
जानती तुम नही
है अपना भी यही हाल
तुम को भी है यह एहसास
चाहती हो करु पहले मैं इकरार
हाँ, यह भी जानता हूँ मैं
चाहता हूँ अभी लेना तेरी तड़प का मज़ा
इस लिए अब तक चुप मैं रहा
अब मगर दूरी नही सही जाती है
तुम कहो या ना, जुबां मेरी कहना चाहती है
हाँ,
हाँ, हमे महौबत है ...
--- अमित २०/०५/०५

मेरी जिन्दगी ...

जानती नही तुम
लाकर मेरी जिन्दगी में तुम्हे
किया है अहसान उसने बडा
साँसे तो तव भी चल रही थी
जी रह हूँ अब मैं
खुश तो तव भी था
ख़ुशी को अब पहचान रह हूँ अब मैं
जब से आई हो जिन्दगी में
आये हैं नये मायने इस में
ख़्वाब तो देखे थे पहले भी
रंग उनको तुमने दिए
जिन्दगी तो गुजर ही रही थी
जीने के हुनर तुम ने दिए
ग़र कोई पूछ ले हम से
कहते किसे है हम "जिन्दगी"
सामने तुम को कर देंगे
और कह देंगे
यह ही है हमारी "जिन्दगी"
--- अमित २८/०५/०५

Friday, July 20, 2007

सच्चाई ...

बोलता हूँ मैं
सच सच बोलो तुम
मैं बस चाहता हूँ
सच सुनना
छोड़ दूगां मैं साथ तुम्हारा
ग़र लगा मुझे यह कोई अफसाना
डरी, सहमी सी वो बोली
हाँ,
कभी चाहा था मैने
उसको, हद्द से जयादा
यकीन जानो
हमेशा से जानती हूँ
मैं अपनी मरियादा
ना जाने फिर क्या हुआ
बस , इतना सुना
कहा उसने
नही रह सकते अब हम साथ
चली जाओ तुम मेरी जिन्दगी से आज
क्या
क्या, बस येही था सच्चाई का इनाम
या
बस इतना ही था साहस मिलने का उस से
सच्चाई है जिसका नाम।
--- अमित २०/०७/०७

Monday, July 16, 2007

यह जीवन ...

यह जीवन
बडा ही विचित्र
बडा ही रहस्मयी
और सदा ही भर्माता हमे
क्या छिपा है
भविष्य के गर्भ मे
यह कोई ना जान सका
उस पर भी देखो
यह मानव
अपने भविष्य की
क्या क्या सुनहरी
कल्पनाए कर रह
जनता यह इतना भी नही
होगा कल क्या
इस पर
यह समय
रोज देता हमे
नई चुनोती
और करता प्रयास
रोके हमारे बढते कदम
मगर यह तो है मानव धर्म
दिखलाए अपना परुसार्थ
स्वीकार करे इसकी चुनोती
और करे निरंतर प्रयास
अपनी विजय का
अगर ऐसा हुआ
यक़ीनन एक दिन आएगा
तुम्हारा आज
तुमसे पूछेगा
बता बन्दे
तू कल अपने लिए
कैसा जीवन चाहेगा ...
--- अमित २१/०४/०५

Friday, July 13, 2007

हिम्मत ...

राहे जिन्दगी में
ना जाने कितनी बार
लडखडाओगे तुम
ना जाने कितनी बार
गिरोगे तुम
कोई गम , कोई फिक्र
ना तुम को इस से आने पाए
जब भी लडखडाओ
और अधिक ताक़त अपने पैरों में लाओ
जब भी गिरो तुम
और लड़ने की लगन जगाओ तुम
तुम गिरे तो कोई गम नही , कोई हार नही
मन का विश्वास ना गिरने दो तुम
उम्मीदे ना अपनी कम होने दो तुम
जो विश्वास ना डग्मगायेगा
तो कोई मुश्किल
कोई परेशानी
क्यों ना तुम्हारे सामने आये
दूर तुम्हारे विश्वास से बस पल में हो जाये
ग़र मन में हो विश्वास मंज़िल पाने का
और हो उम्मीद जीत जाने की
तो बस देखना तुम
रास्ते खुद-ब-खुद बन जायेगे
और मंज़िल तुम्हे मिल जायेगी ...
--- अमित २८/०५/०५

Thursday, July 12, 2007

जा रही है तू ...

तुझे जाना है
मालूम था मुझे
तू जा रही है
मालूम है मुझे
मगर याद आ रही है मुझे
मुझसे कही तेरी हर बात
तेरे साथ गुजारा हर लम्हा
और तेरी बेपन्हा मोहबत
साथ ही तड़पा रही है
तुझ से होने वाली जुदाई
हाँ , स्वार्थी ही हूँ मैं
और हूँ भी क्यों ना
दिया हैं तुने मुझे कितना अनमोल एहसास
खोना जिस को आता नाही
ख्यालों मे भी मेरे पास
सोचते ही तुझसे दूरी का
निकल जाती है मेरी जान
लगती है वीरान यह दुनिया
और बेमानी सा यह जहान
कहॉ था मैं , एक अच्छा इन्सान
कहॉ था मैं , तेरे काबिल
की तुने बेपन्हा मोहबत
और बनाया मुझे इक इन्सान
अब जा रही है तू
लगता है मर रहा है वोह इन्सान
ना जा , रूक जा तू
तुझे तो पता है
तुझ में ही बसी है मेरी जान
ग़र हो गई तू दूर मुझसे
निकल जायेगी
मेरे जिस्म से मेरी जान ...
---- अमित २५/०६/०५

चले आओ यारो ...


आओ कभी ऐसे भी
बैठे हम साथ
नीचे ज़मीन
ऊपर हो खुला आकाश
खुशियों के दौर
और मस्त समां होगा
कुछ तुम अपनी सुनाओ
कुछ हम अपनी कहते हों
चलेगा जब दौर
बीती बातों का
ताजा हुआ
गुज़रे जमाने का एहसास होगा
चले आओ किसी शाम तो यारो
मुद्दत हुई है
जब गुजरा करती थी यारों के साथ अपनी शाम ...
--- अमित ०६/०७/ ०७

मीठे सपनो की आंखमीचोली...

भोंर बस होने को थी
आँखें मीठी नींद में डूबी थी
मेरे तन पर आलस्य पूरा छाया था
गई रात बड़ी सुहानी थी
सो मीठे सपनो का भी आना जाना था
अभी ना ये सब छोडा जाये
थोडी देर और इस खुमार मे जिया जाये
सुबह हो गई
अब तो हमे छोड़ो जी ,
तुम धीरे से बोली

और दिल करता रह

बस यों ही कानो में
रस घोलती रहे तुम्हारी शहद से मीठी बोली
और यों ही चलती रहे
हम से मीठे सपनो की आंखमीचोली...
--- अमित १२/०७/०७

तुम्हे क्या दे ...

सोचा किये तुम्हारे लिए
तारे तोड लाये
फिर ख्याल आया
ये आशिक कहॉ जायेंगे
जो तारे गिनते है
वोह अपनी रात कैसे बीतायेँगे
सोचा किये तुम्हारे लिए
चांद जमीन पर उतार लाये
ख्याल आया
ये शायर कहॉ जायेंगे
जो अपनी महबूबा देखते है चांद में
वोह अपनी ग़ज़ल कैसे बनायेगे
सोचा किये तुम्हारी राह में
फूलो को हम बिछायेंगे
ख्याल आया
ये भौरे कहॉ जायेंगे
जो लेते हैं कलियों का रस
वोह तो प्यासे ही मर जायेंगे
सोचते है तुम्हे और क्या दे
हमारे सूरज चांद सब तुम हो
तुम से दिन रात हमरी है
दिल तुम्हे दे चुके है
बस जिस्म हमारा है
और उस मे बसी जान तुम्हारी है.
--- अमित १२/०७/०७

Tuesday, July 3, 2007

प्यार किया है ...

जब साँसों का डोर उलझने लगेगी
जब नसों में दर्द जमने लगेगा
धुंधला चुकी होंगी जब आंखें
डूबा उम्मीद का तारा होगा
दूर तलक इस जहाँ में
कोई भी हमारा सहारा ना होगा
कभी तुम पुकार कर देखना
मौत से भी चंद लम्हे
मैं चुरा लाऊँगा
तुम्हे इतना प्यार किया है
इस तरह जहाँ से चला नही जाऊँगा .
--- अमित ०३/०७/०७

Monday, July 2, 2007

जब तुम बोलो ...

लगता जैसे दूर कहीँ
झरना गीरे पर्वतों से
लगता जैसे कल-कल बहे
करीब नदिया कहीँ से
लगता जैसे कूके कोयल
दूर कहीँ बन से
लगता छेड़े जैसे कोई बंसी की तान
ज़रा नजदीक से मेरे
लगता जैसे गूंजे घंटा
दूर कहीँ किसी मंदिर से
ये सब मुझको लगता
जब तुम बोलो हलके हलके.
--- अमित ०२/०७/०७

Sunday, July 1, 2007

यह मैसूर कि फिजा ...


कैसा सुहाना मौसम है
कैसी अल्हड हुई हवा है
झूम झूम तरु भी करते
अपनी खुशी का बखान
छाई है काली बदली
अनंत फैले इस आसमान में
ज़र्रा ज़र्रा धरती का
है हर ओर सुगंध अपनी फैलाये
रिमझिम होती बरखा
रहती है हर दम
मन को मेरे हर्षाए
सच है हो गई है
मोह्बत मुझे भी
इस हसीं फिजा से
सोचता है दिल
अब ना जाये हम
"मैसूर" की ज़मीं से कहीँ
क्योंकि जो फिजा यहाँ
वो नही ओर कहीँ ...


--- अमित ०२/०७/०७