मैं जो मुस्काता हूँ
लोग मुस्कान पर जाते
चंद पल का साथ है
राह फिर अपनी
निकल सब जाते है ...
लिए वो आते है
शिकन अपने माथे पे
और लिए मुस्कान जाते है ...
पीछे मुड़ कर
न कभी दिखा किसी ने,
ज़ख्म,
इस दिल में भी गहरे है
मेरी मुस्कान के पीछे
मेरी पलकों पर
मेरे आँशु ठहरे है ...
--- अमित २७/०७/२०१०
3 comments:
मार्मिक रचना.
मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
ऐसी कवितायेँ ही मन में उतरती हैं ॥
Post a Comment