बहुत दिन हुए,
लगा न कोई शिकार हाथ !
गये कुछ दिनों से
कहीं थी नज़र अपनी
सोचा आज कर ले शिकार !
छोटी सी
यें चीज़ नज़र हैं आती
देखें जो कद काठी,
स्कूल को जाती
यें बालक नज़र है आती
और दोस्तों
गलती यहीं सब से हो जाती!
बत्ते भर के शरीर में
पहाड़ भर की आफत समाई !
करने की जो सोचो, दो-दो हाथ
अरे भाई बस मुहज़ोरी के,
लगता मनो ले छुट्टी
मधु-मक्खिया तुमसे मिलने आई !
शब्दों की फैंकी हर एक ईंट
पत्थर बन वापस आती है,
सोच अपनी भलाई
जुबान खुद चुप हो जाती है !
हिम्मत की न पूछो बात
बड़े पहाड़ यें चढ़ जाती हैं !
देख इनका यह सौम्य रूप
लडको की फ़ौज भी घबराती है
जरा "साईखोम" से पूछो
क्या यें कहलाती हैं ???
(अपने एक सह-कर्मी / दोस्त पर )
---अमित ०६/०७/२०१०
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