रह जाएगा फिर यह
चंद किताबों में बंद
मत लिखो तुम वीर रस ,
ना आएगा उसमें उबाल अब
रगो में ना दौड़ता लहू अब
मत लिखो तुम वीर रस,
सजाने को ड्राइंग-रूम अपना
बिक गई अब इंसानियत
मत लिखो तुम वीर रस,
पृथ्वीराज नहीं पैदा अब होते
जयचंद काम ना कुछ आयगा
मत लिखो तुम वीर रस,
हो चुके नपुंसक सब अब
मानेगा ना कोई यह सब
मत लिखो तुम वीर रस,
गर दिल ना मने फिर भी
तो दिखाओ जमाने को वीर रस
बदल जायंगे दिन तब सबके
और फिर कोई "चंदबरदाई"
फिर लिखेगा अमर वीर रस ...
(पता नहीं क्यों लिखा हैं , बस दिल में आया )
--- अमित १०/०७/२०१०
3 comments:
बढ़िया ओजस रचना .....
सटीक रचना.
acha likha hai sahi likha hai
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