Sunday, July 4, 2010

याद तेरी और आई...

जब दर्द की इंतहा हो गई
मयखाने का रास्ता याद आया
बैचैनी ज्यों ज्यों बढती गई
पैरों में तेजी और आती गई
चंद लम्हों में तय हुआ सफ़र
आ रहा था सामने मयखाना नज़र
क्या था लोगो का आलम वहां न पूछिए
बुतखानो में कम, भीड़ वहां ज्यादा पाई
हर मयकश के लबो पर फरयाद
बस एक ही बार बार आती थी
"बिछड़ा यार मिला दे ओये रब्बा !"
हालत अपनी भी कुछ जुदा न थी
दुआ करते खुदा से मय होटों से लगाई
लगा मय अपना ग़म गलत कर देगी
दवा पर अपने दर्द की कुछ हो न पाई
जितनी पी मय हमने, याद तेरी और आई...
--- अमित ०४/०७/२०१०

2 comments:

sanu shukla said...

bahut sundar...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

एहसासों को अच्छे से बयां किया है