Thursday, August 18, 2011

जय हिंद....

तन पर बस एक धोती
हाथ में थी बस एक लाठी
बन मसीहा, वो आया था
अहिंसा का था पुजारी
१९४७ में जिसने देश आज़ाद कराया था ...
गये फिरंगी, कमान "अपनों" ने संभाली
हो बेफिर्क राह अपनी-अपनी सबने ली...
मौसम बदले, फसलें बदलीं
नस्ले बदलीं , नीयतें बदलीं
"अपनों " से कमान, "लोगो" ने ले ली...
आज़ादी थी अब भी अपनी
घुटन का फिर भी एहसास हुआ...
सीने दबी चिंगारी, घुटकर रह जाती थी
खोखले इन शरीरों से, आवाज़ कोई बुलंद न आती थी
हालत अपनी गुलामी से कुछ जुदा नज़र न आती थी ...
मसीहा आज फिर एक सामने आया है
अहिंसा को फिर जिसने हथियार बनाया है
आज़ादी हमने यों ही नहीं पाई है
कीमत इसकी हर कदम पर बड़ी चुकाई है ,
बात उसने यह सबको समझाई है
भीतर दबी चिंगारी को , हवा उसने दिखाई है ...
इस चिंगारी को बड़वानल हमको बनाना है
कंधे से मिला कन्धा जिम्मेदारी हर उठानी है
वापस "अपने" हाथों में कमान हमने लानी है
जागो, उठो सब
ललकार "जय हिंद" की बुलद लगानी है...

( समर्थन से पहले भ्रस्टाचार का विरोध )

6 comments:

Udan Tashtari said...

जय हिन्द!!!

Vaibhav said...

Bahut sundar....

संजय भास्‍कर said...

वाह बेहतरीन !!!!

जय हिंद जय भारत

amrendra "amar" said...

waah behtreen bahvabhivykati ke saath behtreen prastuti

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

अमित शर्मा जी पहली बार आप के ब्लॉग पर पहुँच सका ..बहुत ही सुन्दर जज्बात रचनाएँ ..काश ऐसे ही मनोभाव सब बना कर चलें ..सुन्दर रचना ..शुभ कामनाएं
भ्रमर ५

आज़ादी हमने यों ही नहीं पाई हैकीमत इसकी हर कदम पर बड़ी चुकाई है ,बात उसने यह सबको समझाई है भीतर दबी चिंगारी को , हवा उसने दिखाई है ...इस चिंगारी को बड़वानल हमको बनाना है कंधे से मिला कन्धा जिम्मेदारी हर उठानी है

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

अमित शर्मा जी पहली बार आप के ब्लॉग पर पहुँच सका ..बहुत ही सुन्दर जज्बात रचनाएँ ..काश ऐसे ही मनोभाव सब बना कर चलें ..सुन्दर रचना ..शुभ कामनाएं
भ्रमर ५

आज़ादी हमने यों ही नहीं पाई हैकीमत इसकी हर कदम पर बड़ी चुकाई है ,बात उसने यह सबको समझाई है भीतर दबी चिंगारी को , हवा उसने दिखाई है ...इस चिंगारी को बड़वानल हमको बनाना है कंधे से मिला कन्धा जिम्मेदारी हर उठानी है