शादियों का मौसम नज़दीक आ रहा है
हर गये दिन नया न्योता घर आ रहा है...
देख मुस्कुराती सूरतें लडको की,
ताड़ हम को उनपर आ रहा है ...
क्यों न हो भाई,
हमको भी अपना गुजरा जमाना याद आ रहा है...
कुछ साल पहले हमने भी शादी रचाई
शादी इसी लड़की से होगी, जीत घर
यही थी आखिरी जीत जो हमने पाई है,
बाद शादी के तो, चुम्बन बस "हा
शक्ल जो उन्होंने "मुहं दिखाई"
असल तेवरों के उनके, झलक हमने त
पूरे एक साल तक दी थी हमने ई-ऍम-आई
सात दिन के उस "हनीमून" की, जो थी विदेश में मनाई...
यों तो बाज़ार हम हर हफ्ते ही जाते है,
भर-भर कर समान हमेशा घर भी लाते है...
पर कब की थी हमने खुद की खरीददारी,
याद करने में दिमाग पर थोड़े जोर लग जाते हैं..
हमको क्या है पहनना, कपडे भी मैडम के हाथों तय किये जाते है
और "इस ड्रेस में कैसी लग रही हूँ", ऐसे कठिन सवाल हमसे किये जाते है...
ड्रेस ली तो बस एक जाती है, पसंद मगर पांच घंटे में वो आती है
"शौपिंग में हमेशा नाराज़ हो जाते हो", तोहमत भी हमपर ही आती है...
शौपिंग इतनी हो चुकी, थक कर अब खाना कहाँ बनायेगे,
पास में ही रेस्त्रा है, चलो डिनर कर के ही घर जायंगे...
फरमाइशे और पत्नी, पर्यायवाची से नज़र अब आते हैं
शादी के बाद पत्नी ही सही होती है, अपने सारे "लोजिक" गलत से नज़र आते है...
होता होगा कभी, जब होता होगा, कि पत्नी डर जाती थी, आँखों में आंसू लाती थी,
सिंघणी सी आज वो दहाड़ती है, बकरी से आज पतिदेव मिमियाते है....
मायके आजकल कहाँ किस को जाना होता है,
बोर हुए जब माँ-बाप, बिटिया के पास होलीडे मनाना होता है...
सास-ससुर... नाम सुना सुना सा लगता है ,
हाँ, याद आया, परेशान करने कभी कभी वो भी घर आते है...
दुखती रगे ऐसी तो जाने कितनी है,
संभल कर आप हाथ रखे, दर्द से हम बहुत करहाते है...
साहब, सोच समझकर किजिए शादी, बाड़ी शादी के समीकरण बदल जाते है,
पत्नी की सारी जिम्मेदारी आपकी, और आप उनकी जिम्मेदारी में कहीं नज़र नहीं आते है !!!
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