जिस व्यवस्था में हम रहते है, उसे प्रजातंत्र कहते है
और सुना है प्रजातंत्र में अधिकार, प्रजा क
अपना तो इतिहास रहा है, अमन चैन से हम जीते है
सत्याग्रह और जनांदोलन से मोर्चे हमे कई जीते है...
मानक आज जरा बदले हुए हमको नज़र आते है
चोर-उचक्के सरकार चलाते और निर्दोष लाठी से हांक दिए जाते है...
ज्यादा नहीं बस मेरे कुछ सवालों को गौर कीजिये
आगे करना है क्या आप को, फिसला फिर खुद कीजिये...
हजारो करोड़ रूपये का गबन लोग आराम से यहाँ कर जाते है
अनगिनत परिवार करोड़ सारी जिन्दगी में न कमा पाते है...
जिस ने यह पैसा चुराया है, खुद देखे कितने परिवारों पर जुल्म उसने ढाया है
एक कत्ल की सज़ा फ़ासी है, फिर क्यों स्थान चोरो ने संसद में पाया है ...
अपने हक की मांग करती जनता पर आज लाठीं बरसाई जाती है,
वहां जेल में बंद "कसाब" को रोज़ बिरयानी खलाई जाती है...
मारते जो निर्दोषों को और लुटते अमन देश का, होती उनकी रखवाली है
करने को उनकी मिज़ाजपुरसी, जेबे जनता ही होती खालीं हैं...
बढती महंगाई के दोष भी जनता पर मढ़ दिए जाते है,
सरकारी खज़ाने जा विदेशों में भर दिए जाते है...
जनता जो भोली है, उसको बहला दिया हमेशा जाता है,
निकलते है अपना काम, उसके विश्वास को चाकू घोप दिया जाता है...
न किसी बाबा का समर्थक हूँ मैं, न सरकार से बैर रखता हूँ
प्रजातंत्र का एक हिस्सा हूँ, बस अपनी शंका सामने रखता हूँ ..
कोई तो हमे बताये, यह शंका समाधान करवाए,
प्रजातंत्र तो यह नहीं, तो फिर इस वयस्था को क्या कहते है !
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