शादी का लड्डू
जो खाये वो पछताये
और जो न खाये वो भी पछताये !!!
कहानी जब ऐसी ही थी
तो सोचा
क्यों न हम खाये,
और फिर पछताये !!!
इरादा करके हमने हाँ कर दी,
और कुछ ही दिनों में माँ-बाप ने हमारी शादी करदी !!!
कुछ शर्माती, कुछ हिचकिचाती
लक्ष्मी बन श्रीमती जी हमारे घर आईं !!!
घुलने-मिलने में कुछ समय लगा
फिर श्रीमती ने जौहर सब अपनी दिखलाई !!!
कुछ दिन महीनों की बस बात थी
धाक उन्होंने पूरे घर पर अपनी जमाई !!!
"पाक-कला" में कुशलता गज़ब की पाई थी
माता जी तो तब से रसोई में जा ही नहीं पाई थी !!!
वस्त्र चयन के तो सभी कायल थे
जाने कितने लड़के-लड़की पास-पडोस के घायल थे !!!
खिलखिला कर बातो पर वो जब हंसती हैं
कानो में जैसे कोयल की मीठी ताने सी बजती हैं !!!
ननद को मिली एक अच्छी सहेली है
उड़ते देवर की डोर भी इन्होने खेंची हैं !!!
हर काम-काज में श्रीमती जी बड़ी सयानी हैं
घर-दफ्तर की जिम्मेदारी खूब उन्होंने संभाली है !!!
घर में आज होता जब भी कुछ काम है
सलाह उनसे से लेना, जरूरी एक काम है !!!
जब से वो घर में हमारे आई हैं
हर तरफ नई रौनक घर में आई है !!!
पिता जी के दिल में विशेष जगह इन्होने पाई है
कहते है बहु के रूप में "लक्ष्मी जी" घर आईं हैं !!!
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