चिलचिलाती धुप और गर्मी से मुक्
दो दिन गये, रिमझिम फुहार से सा
रिमझिम से अपना भी मन बौराया,
आओ करे सावन में शहर भ्रमण, वि
कुछ हम ख्याल दोस्तों को साथ लि
घर से बहार शहर का रुख हमने कि
घर से निकलते ही "नदी" काकी नज़र आई
पास से ही घर के , बहती वो गईं थी पाई ...
हमने पूछा,
क्या काकी, नज़र बहुत दिनों बाद आईं ?
अरे कुछ नहीं, बस नीद में मैं सोई थी,
परसों सावन जो आया था, बस उसी ने मुझे जगाया था...
बात कर चार गाडी हमारी आगे बढ़ी
तो जा सीधा नज़र मौसी "कीचड़" पर पड़ी...
देख उन्हें भी हमने सवाल वही दागा,
बोले हम, अरसे बाद आप को देखा, भाग्य हमारा जागा...
सुन बात हमारी मौसी थोडा मुस्काई
बोली, दो रोज़ गये सावन बुलाने आया था, कैसा न आती भाई ...
कर बात मौसी से हम आगे बढ़े,
देखा चचा "जाम" थे रस्ते में खड़े...
हमने पूछा अरे चचा आप कैसे आये
सावन की बधाई देने का मन था, चले आये...
हमने कहा, चलिए घर आइये,
सब को देनी बधाई है, कहाँ कहाँ जाऊँगा
चौराहे पर खड़ा हूँ, सब से यहीं मिल जाऊँगा...
हम चल दिए, हमे तो आगे जाना था
कुछ भी हो, शहर का हाल पता लगाना था...
राह में हमको कुछ मजदूर मिले,
सड़क किनारे काम में थे वो लगे हुए...
कौतुहल में हम उनसे मिले,
पूछा सावन के इन दिनों किस काम में वो लगे हुए ?
कुछ "खोलियां" हमको बनानी है
काम यह सावन जाने से पहले निपटानी है...
खोली में जब हमने झाँका, तो चक्कर आई,
कहा हमने, अरे भाई यह क्या खोली बनाई...
मजदूर मुस्काया और बोला,
साहब यह आदेश थी हमको आई,
6X2 की सही नाप की खोली है हमने बनाई...
बात सुन उसकी क्या हम कहे, बात यह समझ न आई
बर्बस होठों पर एक डर मिश्रित मुस्कान चली आई ...
सावन अब पहले सा न आता है, यह बात हमने जान ली,
"काकी", "मौसी", "चचा" संग, नई खोली का पता भी लाता है
अब जब सावन आये तो बस घर रहना ही मनभाता है !!!
1 comment:
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
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