बदल गई है फिज़ा मेरे गाँव की
बुलाये जो न आता था सावन
जाने का नाम अब न लेता है
सुनाया करता जो मधुर गीत
"जी" बस अब हमारे जलाता है
दोमासी होता था जो पतझड़
छह माह गये, अब भी इतराता है
बहार तो मानो, मुह ढक सो गई
जगाने का हर जातां बेकार जाता है
चाँद भी मानो कलाएं अपनी भुला
पूनम तो गली हमारी भूली
और मावस करती रोज ठिठोली
बस ये एक पुरवाई ही तो है
हालत जिसको हमारी समझ आई
सरे-शाम खूब यह बहती है
जानती है ये
मेरी महबूब, दूर -बहुत दूर रहती है ...
बुलाये जो न आता था सावन
जाने का नाम अब न लेता है
सुनाया करता जो मधुर गीत
"जी" बस अब हमारे जलाता है
दोमासी होता था जो पतझड़
छह माह गये, अब भी इतराता है
बहार तो मानो, मुह ढक सो गई
जगाने का हर जातां बेकार जाता है
चाँद भी मानो कलाएं अपनी भुला
पूनम तो गली हमारी भूली
और मावस करती रोज ठिठोली
बस ये एक पुरवाई ही तो है
हालत जिसको हमारी समझ आई
सरे-शाम खूब यह बहती है
जानती है ये
मेरी महबूब, दूर -बहुत दूर रहती है ...
--- अमित २७/०६/२०१०
1 comment:
बहुत उम्दा! आनन्द आया.
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