Thursday, June 24, 2010

शायद कोई समझा दे ...

कुछ लिखी हमने
और कुछ बनाई
कविताये यार !
प्रतिकिर्याएं आई
खुशियाँ संग
अचरज भी लाई !
कुछ सरहानाये आई
दिल को मगर
आलोचनाये ज्यादा भायी !
अचरज था
हरियाली उनके हिस्से आई
जो थी गईं बनाई
और सुखा वहां पड़ा
जहाँ थी दिल की गहराई !
--- अमित २४ /०६/२०१०

1 comment:

Udan Tashtari said...

दिल की गहराई नापने की फुरसत किसे रहती है आजकल :)