Monday, June 7, 2010

तुम और मेरी ग़ज़ल...

लिखूंगा तुम्हारे लिए
एक ग़ज़ल
वादा झूठा नहीं था
मुझको मिली
तन्हाई भी थी
और हसीं
मौसम भी था
ख्यालो का आया
एक सैलाब भी था
बन कर लफ्ज़
उतर रहा था
हर ख्याल
मेरे कागज़ पर
और उतर गई
तुम बनकर एक
खूबसूरत ग़ज़ल
मेरे उस कागज़ पर
लगा फिर मुझको यों
ये बे-मानी है
लफ्जों में तुम को बंधना
हो न कितने ही
खूबसूरत ये लफ्ज़
ब्यान तुमको
कर न पाते है
यही सोच
उड़ा मैंने दिया कागज़ वो
और फ़ैल गई
खुशबू तुम्हारी
चारो ओर ...
--- अमित ०७ /०६ /२०१०

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