Friday, June 18, 2010

चंद कलियाँ गुलाब की...

चंद कलियाँ गुलाब की
रोज़ तोड़ लाता हूँ मैं
दिखती है इनमें मुझे
अब सूरत ज़नाब की !
चंद कलियाँ गुलाब की ...
जरुरी नहीं है अब मुझे
आब-बो-हवा कश्मीर की
महका रही है घर मेरा
ख़ुशबू ज़नाब की !
चंद कलियाँ गुलाब की ...
जायज है अब मस्रुह्फियत मेरी
चुन चुन के आ रही है
यादें ज़नाब की !
चंद कलियाँ गुलाब की ...
चर्चे है रोज़ मेरे बाज़ार में
दिखला रही है रंग मुझ पर
दीवानगी ज़नाब की !
चंद कलियाँ गुलाब की...
--- अमित १८/०६/२०१०

No comments: