Sunday, June 27, 2010

कला ...

भीड़ भरे उस बाज़ार के
दूर एक कोने में
लिए एक कुर्सी
बैठी थी वो !
हाथ में थी
चंद पेंसिले,
कुछ कागज़
और पास पड़े थे
कुछ नमूने
उसकी कला के
उतारे थे जो उसने
अभी कागज़ पर !
घिरी लोगो की बीच
तारो संग चाँद सी
नज़र वो आती थी,
लिए होंठों पे मुस्कान
बिजली से हाथ
उसके चले जाते थे,
देखते ही देखते
भाव आप के चेहरे के
कागज़ पर उतर आते थे !
सच ही कहा है लोगो ने
कला ,
छिप न कभी पाती है
रखो सात तालो में
रौशनी इसकी
फ़ैल ही जाती है !!!
( मोरिशस के प्रमुख बाज़ार में एक छोटी लड़की लोगो के पोट्रेट बना रही थी, उसकी कला और रफ़्तार पर )
--- अमित २६/०६/२०१०

1 comment:

Udan Tashtari said...

सचा कहा-कला फूलों की महक सी है..अच्छा चित्रण!!