खटखटाया था कल
दरवाजा किसी ने
और टूटी ख़ामोशी
जाने कितने दिन बाद
मेरे घर की
गये हो जब से तुम
सब खामोश हो गया
दिनों बीते आवाज़
अपनी भी सुने
घूम कर हर दिशा से
लौट आती है नज़रे
बस घर के दरवाजे पे
और जोहते है बाट
कान एक दस्तक को
छोड़ चुकी है साथ मेरा
परछाई भी अब
और लगी है
खोजने तुम को
हर सूं अब...
खोला जो दरवाजा
डाकिया आया था
ख़ुशी के एक लहर दौड़ गई
संदेशा वो तुम्हारा लाया था ...
--- अमित १०/०६/२०१०
5 comments:
रोचक रचना।
bhavuk man ke ehsas. sunder rachna.
waah badhiya sukhad...
इस पोस्ट के लिेए साधुवाद
Bahut khub........bhabhi ji will sink in love with you once again........ :-)
Exceelent lines Amit...
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