रखना था संजो कर
जीवन के अनमोल पल
सुझा न जब कोई उपाय
डायरी ली हमने एक बना
दर्ज हो रहे थे उसमें
जीवन के कुछ ख़ास पल
आलसी मन हमारा
भटकने अब लगा था
लिखना डायरी हमे
नीरस लगने लगा था
उपाय कुछ अब
एक तीर से दो शिकार
सा हमको करना था
हर घटना को हमने
विस्तृत से संछिप्त में समेटा
गद्द्य को पद्द्य में लपेटा
घटनाएं अब
कविताये बनने लगीं
नीरसता अब दूर हुई
आनंद कविता में अब आता हैं
हर गये दिन
यादों का एक अध्याय जुड़ जाता हैं ...
जीवन के अनमोल पल
सुझा न जब कोई उपाय
डायरी ली हमने एक बना
दर्ज हो रहे थे उसमें
जीवन के कुछ ख़ास पल
आलसी मन हमारा
भटकने अब लगा था
लिखना डायरी हमे
नीरस लगने लगा था
उपाय कुछ अब
एक तीर से दो शिकार
सा हमको करना था
हर घटना को हमने
विस्तृत से संछिप्त में समेटा
गद्द्य को पद्द्य में लपेटा
घटनाएं अब
कविताये बनने लगीं
नीरसता अब दूर हुई
आनंद कविता में अब आता हैं
हर गये दिन
यादों का एक अध्याय जुड़ जाता हैं ...
(वास्तविकता यही हैं :) )
--- अमित १४/०६/२०१०
4 comments:
नमस्ते,
आपका बलोग पढकर अच्चा लगा । आपके चिट्ठों को इंडलि में शामिल करने से अन्य कयी चिट्ठाकारों के सम्पर्क में आने की सम्भावना ज़्यादा हैं । एक बार इंडलि देखने से आपको भी यकीन हो जायेगा ।
khoobsoorat
सही है कविश्रेष्ट..यही तरीका है अभिव्यक्त होने का.
jivan ka ras hai..........
Post a Comment