चढ़ चुके है हम पहाड़
फतह करना है अब सागर यार
रट सबने लगाई थी
जाना एक टापू पर है
होकर एक नाव में सवार
तैयारी की जिम्मेदारी
फिर सौपी गई हम पर
कमान हमने फिर संभाली
ले साथ एक दो का
तैयारी पूरी कर डाली
दिन, जगह सब तय था
इंतज़ार बस आने का था
दौड़ा-दौड़ा फिर दिन वो आया
सामान संभाले अपना
कारवां सागर तट पर आया
सागर से ज्यादा जोश
ले रहा हिचकोले था
और सागर भी स्वागत को
बाहें अपनी खोले था
"कोरल बेले" था उस नाव का नाम
सवार थे जिस पर हम
जैसे जैसे नाव सागर के भीतर जाती थी
लहरें अपना रूप दिखती थी
जोश अभी भी गरम था
पर देख बढ़ता जोश लहरों का
चुपके चुपके हो रहा अपना कम था
खाती हिचकोले नाव आगे जा रही थी
मस्ती अब जरा किश्तों में आ रही थी
सागर को अब मस्ती ज्यादा सूझी
लहर एक ऊँची , नाव से टकराई
वो देखो लड़कियों की फ़ौज
उड़ कर अपनी जगह से
नाव के फर्श पर आई
हालत लडको की भी पतली थी
बैठे जो नाव के किनारे थे
नज़र भीतर सीट से चुपके आ रहे थे
होले होले नाव अपनी टापू पर आई
जान में जान लोगो की आई
सागर फतह तो हमने कर लिया
पर प्रकर्ति के आगे हैसियत अपनी नज़र आई...
--- अमित १४ /०६/ २०१०
Sunday, June 13, 2010
आओ चले, करे सागर फतह ...
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3 comments:
prakriti maa se bada koi nahi...sundar rachna
बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
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