ए वक़्त ज़रा ठहर जा,
अभी तो हसरतें बाक़ी हैं।
रात अभी जवान हुई है,
इसका घूँघट अभी बाक़ी है।
शमा तो बस अभी जली ही है,
परवाने का जलना अभी बाक़ी है।
उनकी जुल्फें तो अभी खुली हैं,
जुल्फों का बिखरना अभी बाक़ी है।
अभी तो पैमाने से पी है,
आंखों के जाम अभी बाक़ी हैं।
लब तो अभी सिले हुऐ हैं,
उनसे अरमान निकलना अभी बाक़ी है।
अभी तो हम होश में है,
मदहोश होना अभी बाक़ी है।
ए वक़्त तू अभी जता कहॉ है,
उनमे हया अभी बाक़ी है।
निकल ने दे दिलों के अरमान,
किसे पता जिन्दगी कितनी अभी बाक़ी है...
( अपनी शरीकेहयात के लिए )
--- अमित २९/०३/०७
5 comments:
शरीकेहयात abhi banni khahae !!! abhi sae yae haal hae toh aage infosys ka kya hoga!!!
on serious note the poem has turned out to be very good keep it up
Good one.......
Nice one...
aasman choo gaye ho bandhu!
kya likha hai
kya shabd hain
kya style hai
bahut time baad itna jabardast kuch pada hai..
tareef karne ke liye bhi shabd dhoondna mushkil hai... bahut hi badiya likha hai..
shastri sir ka naya site hai
http://chitthalok.com/
agar uchit lage to is par bhi register kar lo..
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