रोज सा दिन निकला था वो भी
रोज से काम में लगे थे सभी
रोज सी ही हर तरफ सरगर्मी थी
सब कुछ ही तो था रोज सा
बस पल में सब कुछ बदल गया
जो हँसता-गाता था पल भर पहले
क्षण में गम़गीनियो में तब्दील हो गया
समझ किसी को कुछ भी ना आया
जो जहाँ था जड़ रह गया
कुछ हो पाता , इस से पहले
जो था शहर; वो शमशान हो गया
वो जो-जो मरा था
वो ना हिंदू था, ना मुस्लमान था
वो ना था सिख, ना इसाई था
जिसने अपनी जान गवाई थी
बस एक इंसान वो था
जिस ने था उसको मारा
उसका कोई मज़हब न था
वो कोई इंसान ना था
हुआ उस दिन इंसानियत का कत्ल था
याद उसको कर के आज भी
दिल अपने दहल जाते है
कुछ अपने, कुछ बेगानो की याद में
अपनी आंखों में अंशु भर आते है
आओ साथ उठे और करे प्र्यतन
शान्ति का अभियान हम विश्व में चलायेंगे
हम सब जानते है दुसरा ११ सितम्बर हम न सहपायेंगे ...
(११ सितम्बर को अपने जान गवाने वालो को श्रद्धा नमन )
--- ११ /०९/२००७
3 comments:
keep writing
दिल को छूने वाला चित्रण
very nicely written, right from the start to the end... very well written.
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