Wednesday, September 5, 2007

पर्दा नशीं ...


पर्दानशीं है महबूब मेरा

छुपाया है नकाब में

रुख-ए-रोशन उसने

और तडपाया है हमे

उसकी इस अदा ने

चाहा है जब भी

दीदार हमने उसका

दुश्मन बना है

ये पर्दा उसका

माना फबता है पर्दा

हुस्न पर

और गहना है

हया उसका

मगर और दमकता है हुस्न

जब पडती है उसपर

नज़रे उसके आशिक की

सोने पे सुहागे सा होता असर

जब उठता पर्दा और
मिलती जब नज़रे

आशिक की दिलबर से जा कर



--- अमित ०६/०७/09


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