Thursday, September 20, 2007

बे-व्फाई

मैं बे-वफा हरगिज़ ना था
की थी मैंने भी वफा
जो मैं दिखा ना सका
दीवाना मुझे करार किया था
थीं मेरी कुछ मजबुरिया
हर कदम पर जिसने
लाचार मुझे किया था
तुम तो थी
जिसे हम पर पूरा यकीन था
फिर क्यों किया ऐसा
तुमने किया मुझे क्यों रुसवा
क्यों तुम ने वो सब सच माना
जो कभी हुआ न था
ऐसा क्या था दुनिया की बातों में
जो पल सारा विश्वास डोल गया
तुम तो करती इंतज़ार
तुम तो रखती हम पर एतबार
दुनिया का किसे डर था
किसे थी परवाह दुनिया की
मजबुरिया कब तक रास्ता रोकती
दुनिया कब तब आड़े आती
तुम साथ जो हमारा देती
कुछ भी जहाँ में होता
आख़िर जीत हमारी होती ...


--- अमित २२/०९/०७

1 comment:

Anonymous said...

badiya likha hai!