हो गई उनसे फिर
आज राह में मुलाक़ात
था जिसका हमे डर
हो गई वोही बात
पान चबाते , कुर्ता पहने
दूर से चले आते थे
देख उनको हम
मन ही मन घबराते थे
कोशिश थी
उनकी निगाह ना पडे हम पर
यह सोच, इधर-उधर
छिपने की जगह हम तलाशते थे
मगर वो भी साहब
कयामत की नज़र रखते है
कयामत की नज़र रखते है
जिस कोने में हम छुपे थे
सीधे वहीँ रुके थे
हाथ में था उनका झोला
उसे देख चक्कर खा
दिल हमारा डोला
पता था, घंटो हम सताये जायेंगे
हिम्मत नही है, हममे इतनी
कैसे उनकी शायरी झेल पायेंगे
अपनी हालात देख
बीता समय याद आता है
अपने दोस्तो का
बीता समय याद आता है
अपने दोस्तो का
हमसे कतराना समझ आता है
ढाया है हमने,
उन पर सितम बडा
अब वो सोच,
उनकी हालत पर तरस आता है
उनकी हालत पर तरस आता है
सच ही कहा है, किसी ने लोगो
अपना करा सामने आता है ...
( अपने दोस्तो के लिए जिन पर मैं अत्याचार किया )
--- अमित १९/०९/०७
4 comments:
उनकी हालत पर तरस आता है सच ही कहा है, किसी ने लोगो अपना करा सामने आता है
बहुत सुंदर अंदाज ..अच्छा लगा...बधाई
nice use of words
regds
rachna
really nice one we r always lookin foward to read his poems..keep going amit....
hum par aap "atyachaar" jaroor karte rahein..
:-)
shukriya!
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