जब स्कूल को हम जाते थे
भाषाओं की कक्षाओं से हमेशा घबराते थे
हिन्दी के थे याद
चार दोहे, दो छन्द और दो चोपाई
बुरे वक्त पडे तो बहुत काम आते थे
अंग्रेजी को शक्ल हमारी ना भाती थी
भूतकाल की किर्या हमेशा वर्तमान में याद आती थी
गणित-विज्ञान में जरा अच्छे थे
इसी कारण मास्टर जी को थोड़ा जचते थे
गणित- विज्ञान में बच जाते थे
और भाषा की कक्षा में रोज लताडे जाते थे
कहते थे मास्टर जी,
गणित-विज्ञान से देश के काम तो आओगे
बगैर भाषा ज्ञान के दूर ना ज्यादा जा पाओगे
भाषा से आते है संस्कार
और होता है संस्कृति का ज्ञान
संस्कार को जो आचरण में लाओगे
तभी अपनी ज्ञान-संस्कृति को दूर तलक फैला पाओगे
आज, याद उनके आते हमे बोल है
देखते जब अपने देश ही हालत डामदोल हैं
पकड़ते है कान अपने
अपने बच्चो के साथ ऐसा ना होने देंगे
उन्हें भाषा का अच्छा ज्ञान कराएंगे ....
--- अमित १०/०९/०७
4 comments:
"गणित-विज्ञान में जरा अच्छे थे
इसी कारण मास्टर जी को थोड़ा जचते थे
गणित- विज्ञान में बच जाते थे
और भाषा की कक्षा में रोज लताडे जाते थे"
मास्टरजी सही कहते थी. भाषा के बिन कुछ नहीं हो पाता -- शास्त्री जे सी फिलिप
आज का विचार: चाहे अंग्रेजी की पुस्तकें माँगकर या किसी पुस्तकालय से लो , किन्तु यथासंभव हिन्दी की पुस्तकें खरीद कर पढ़ो । यह बात उन लोगों पर विशेष रूप से लागू होनी चाहिये जो कमाते हैं व विद्यार्थी नहीं हैं । क्योंकि लेखक लेखन तभी करेगा जब उसकी पुस्तकें बिकेंगी । और जो भी पुस्तक विक्रेता हिन्दी पुस्तकें नहीं रखते उनसे भी पूछो कि हिन्दी की पुस्तकें हैं क्या । यह नुस्खा मैंने बहुत कारगार होते देखा है । अपने छोटे से कस्बे में जब हम बार बार एक ही चीज की माँग करते रहते हैं तो वह थक हारकर वह चीज रखने लगता है । (घुघूती बासूती)
बहुत अच्छा समझाया मास्साब ने:
बगैर भाषा ज्ञान के दूर ना ज्यादा जा पाओगे
सही तो है!!
बहुत सही कहा है।
सही कहा मास्टर जी ने, भाषा बिन सब ज्ञान अधुरा, कविता भी बहुत अच्छी बनी है
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