Thursday, August 18, 2011
जय हिंद....
Monday, August 8, 2011
भारत सरकार हूँ मैं ...
देता नहीं मुझे
कुछ होता गलत दिखाई,
करूं क्या, नेत्रहीन हूँ मैं !
देती नहीं मुझे
गुहार किसी की सुनाई,
करूं क्या, बधिर हूँ मैं !
चुप ही रहता हूँ
विरोध नहीं कर सकता गलत का,
करूं क्या, मूक हूँ मैं !
होती नहीं महसूस
किसी की वेदना मुझे,
करूं क्या, संवेदनाहीन हूँ मैं !
देखते क्यों हों
मेरी तरफ साहरे की आस से,
करूं क्या, खुद अपंग हूँ मैं !
दिखते क्यों इतने हो हैरान
यही तो है मेरी पहचान ,
हाँ,
करूं क्या, भारत सरकार हूँ मैं !
मुझे न आता है देश के काम आना
बस आता है मुझे,
अपने शून्य (0) का आठ (8) बनाना !
प्रजातंत्र या ???
जिस व्यवस्था में हम रहते है, उसे प्रजातंत्र कहते है
और सुना है प्रजातंत्र में अधिकार, प्रजा क
अपना तो इतिहास रहा है, अमन चैन से हम जीते है
सत्याग्रह और जनांदोलन से मोर्चे हमे कई जीते है...
मानक आज जरा बदले हुए हमको नज़र आते है
चोर-उचक्के सरकार चलाते और निर्दोष लाठी से हांक दिए जाते है...
ज्यादा नहीं बस मेरे कुछ सवालों को गौर कीजिये
आगे करना है क्या आप को, फिसला फिर खुद कीजिये...
हजारो करोड़ रूपये का गबन लोग आराम से यहाँ कर जाते है
अनगिनत परिवार करोड़ सारी जिन्दगी में न कमा पाते है...
जिस ने यह पैसा चुराया है, खुद देखे कितने परिवारों पर जुल्म उसने ढाया है
एक कत्ल की सज़ा फ़ासी है, फिर क्यों स्थान चोरो ने संसद में पाया है ...
अपने हक की मांग करती जनता पर आज लाठीं बरसाई जाती है,
वहां जेल में बंद "कसाब" को रोज़ बिरयानी खलाई जाती है...
मारते जो निर्दोषों को और लुटते अमन देश का, होती उनकी रखवाली है
करने को उनकी मिज़ाजपुरसी, जेबे जनता ही होती खालीं हैं...
बढती महंगाई के दोष भी जनता पर मढ़ दिए जाते है,
सरकारी खज़ाने जा विदेशों में भर दिए जाते है...
जनता जो भोली है, उसको बहला दिया हमेशा जाता है,
निकलते है अपना काम, उसके विश्वास को चाकू घोप दिया जाता है...
न किसी बाबा का समर्थक हूँ मैं, न सरकार से बैर रखता हूँ
प्रजातंत्र का एक हिस्सा हूँ, बस अपनी शंका सामने रखता हूँ ..
कोई तो हमे बताये, यह शंका समाधान करवाए,
प्रजातंत्र तो यह नहीं, तो फिर इस वयस्था को क्या कहते है !
भारत की जनता...
गर सोया हो कोई, तो हम जगाने जायें
जागते हुए करे आँखे बंद, किया उनका क्या जायें...
अज्ञानी हो कोई, तो ज्ञान कुछ उसको दिया जायें
क्या होगा भला, भैंस के आगे जो बीन बजायें...
एकता में होती है बड़ी शक्ति, सुना हमने है
क्या करे कोई, बैर जो उँगलियों को आपस में हो जायें...
होता है दुःख अपने दिल को, हो जब अकारण नुक्सान
करे क्या उनका, जो खुद कर नुक्सान दिखाते अभिमान...
पालन किया जायें नियमों का, यह है इंसान की समझदारी
तोडना हर नियम को, लगता यहाँ इंसान की नैतिक जिम्मेदारी...
अंततः टूट ही जाती है , चीज़ कोई भी जो खींची बहुत जाये
क्या जाने कोई, इनकी कैसी यह मिट्टी है जो बस खिचती ही जायें...
जाने असंख्य कितने है गुण, हुई तब सब की यह प्यारी है
पहचान तो आप गये ही होंगे , यह भारत की जनता हमारी है ...
लंच टाइम ...
सच फिर आज होता पाया मैंने...
बड़े अनमने मन से
किताब को उठाया था मैंने...
आखिरी बार, कब क्या पढ़ा था
यह भी कुछ याद न था मैंने...
एक एक अक्षर को जोड़
कुछ शब्द पढ़े मैंने...
कुछ शब्दों को जोड़
कुछ पंक्तियाँ पढ़ी मैंने...
ज्यों ज्यों पंक्तियों पढ़ा
खुद में अंतर पाया मैंने...
जो थीं अब तक बंद
खुलता उन आँखों को पाया मैंने...
रोज़ की दौड़ धुप में
छुपी थी जो कहीं कब से
हलकी सी एक मुस्कान को ,
होठों पर अपने पाया मैंने ...
जड़ सा जो होगया था
मस्तिष्क मेरा,
नई कुछ कल्पनाओं में
खोया उसको पाया मैंने...
"पुस्तक" होती है, एक सच्चा मित्र
कथन यह फिर याद आया मैंने...
अच्छी "लिखाई", दिखाती है नई राह
सच फिर इसको आज होता पाया मैंने .
शादी के बाद--- भाग~ २ ...
शादी का लड्डू
जो खाये वो पछताये
और जो न खाये वो भी पछताये !!!
कहानी जब ऐसी ही थी
तो सोचा
क्यों न हम खाये,
और फिर पछताये !!!
इरादा करके हमने हाँ कर दी,
और कुछ ही दिनों में माँ-बाप ने हमारी शादी करदी !!!
कुछ शर्माती, कुछ हिचकिचाती
लक्ष्मी बन श्रीमती जी हमारे घर आईं !!!
घुलने-मिलने में कुछ समय लगा
फिर श्रीमती ने जौहर सब अपनी दिखलाई !!!
कुछ दिन महीनों की बस बात थी
धाक उन्होंने पूरे घर पर अपनी जमाई !!!
"पाक-कला" में कुशलता गज़ब की पाई थी
माता जी तो तब से रसोई में जा ही नहीं पाई थी !!!
वस्त्र चयन के तो सभी कायल थे
जाने कितने लड़के-लड़की पास-पडोस के घायल थे !!!
खिलखिला कर बातो पर वो जब हंसती हैं
कानो में जैसे कोयल की मीठी ताने सी बजती हैं !!!
ननद को मिली एक अच्छी सहेली है
उड़ते देवर की डोर भी इन्होने खेंची हैं !!!
हर काम-काज में श्रीमती जी बड़ी सयानी हैं
घर-दफ्तर की जिम्मेदारी खूब उन्होंने संभाली है !!!
घर में आज होता जब भी कुछ काम है
सलाह उनसे से लेना, जरूरी एक काम है !!!
जब से वो घर में हमारे आई हैं
हर तरफ नई रौनक घर में आई है !!!
पिता जी के दिल में विशेष जगह इन्होने पाई है
कहते है बहु के रूप में "लक्ष्मी जी" घर आईं हैं !!!
शादी के बाद--- भाग~ १
शादियों का मौसम नज़दीक आ रहा है
हर गये दिन नया न्योता घर आ रहा है...
देख मुस्कुराती सूरतें लडको की,
ताड़ हम को उनपर आ रहा है ...
क्यों न हो भाई,
हमको भी अपना गुजरा जमाना याद आ रहा है...
कुछ साल पहले हमने भी शादी रचाई
शादी इसी लड़की से होगी, जीत घर
यही थी आखिरी जीत जो हमने पाई है,
बाद शादी के तो, चुम्बन बस "हा
शक्ल जो उन्होंने "मुहं दिखाई"
असल तेवरों के उनके, झलक हमने त
पूरे एक साल तक दी थी हमने ई-ऍम-आई
सात दिन के उस "हनीमून" की, जो थी विदेश में मनाई...
यों तो बाज़ार हम हर हफ्ते ही जाते है,
भर-भर कर समान हमेशा घर भी लाते है...
पर कब की थी हमने खुद की खरीददारी,
याद करने में दिमाग पर थोड़े जोर लग जाते हैं..
हमको क्या है पहनना, कपडे भी मैडम के हाथों तय किये जाते है
और "इस ड्रेस में कैसी लग रही हूँ", ऐसे कठिन सवाल हमसे किये जाते है...
ड्रेस ली तो बस एक जाती है, पसंद मगर पांच घंटे में वो आती है
"शौपिंग में हमेशा नाराज़ हो जाते हो", तोहमत भी हमपर ही आती है...
शौपिंग इतनी हो चुकी, थक कर अब खाना कहाँ बनायेगे,
पास में ही रेस्त्रा है, चलो डिनर कर के ही घर जायंगे...
फरमाइशे और पत्नी, पर्यायवाची से नज़र अब आते हैं
शादी के बाद पत्नी ही सही होती है, अपने सारे "लोजिक" गलत से नज़र आते है...
होता होगा कभी, जब होता होगा, कि पत्नी डर जाती थी, आँखों में आंसू लाती थी,
सिंघणी सी आज वो दहाड़ती है, बकरी से आज पतिदेव मिमियाते है....
मायके आजकल कहाँ किस को जाना होता है,
बोर हुए जब माँ-बाप, बिटिया के पास होलीडे मनाना होता है...
सास-ससुर... नाम सुना सुना सा लगता है ,
हाँ, याद आया, परेशान करने कभी कभी वो भी घर आते है...
दुखती रगे ऐसी तो जाने कितनी है,
संभल कर आप हाथ रखे, दर्द से हम बहुत करहाते है...
साहब, सोच समझकर किजिए शादी, बाड़ी शादी के समीकरण बदल जाते है,
पत्नी की सारी जिम्मेदारी आपकी, और आप उनकी जिम्मेदारी में कहीं नज़र नहीं आते है !!!
मेरे शहर का सावन...
चिलचिलाती धुप और गर्मी से मुक्
दो दिन गये, रिमझिम फुहार से सा
रिमझिम से अपना भी मन बौराया,
आओ करे सावन में शहर भ्रमण, वि
कुछ हम ख्याल दोस्तों को साथ लि
घर से बहार शहर का रुख हमने कि
घर से निकलते ही "नदी" काकी नज़र आई
पास से ही घर के , बहती वो गईं थी पाई ...
हमने पूछा,
क्या काकी, नज़र बहुत दिनों बाद आईं ?
अरे कुछ नहीं, बस नीद में मैं सोई थी,
परसों सावन जो आया था, बस उसी ने मुझे जगाया था...
बात कर चार गाडी हमारी आगे बढ़ी
तो जा सीधा नज़र मौसी "कीचड़" पर पड़ी...
देख उन्हें भी हमने सवाल वही दागा,
बोले हम, अरसे बाद आप को देखा, भाग्य हमारा जागा...
सुन बात हमारी मौसी थोडा मुस्काई
बोली, दो रोज़ गये सावन बुलाने आया था, कैसा न आती भाई ...
कर बात मौसी से हम आगे बढ़े,
देखा चचा "जाम" थे रस्ते में खड़े...
हमने पूछा अरे चचा आप कैसे आये
सावन की बधाई देने का मन था, चले आये...
हमने कहा, चलिए घर आइये,
सब को देनी बधाई है, कहाँ कहाँ जाऊँगा
चौराहे पर खड़ा हूँ, सब से यहीं मिल जाऊँगा...
हम चल दिए, हमे तो आगे जाना था
कुछ भी हो, शहर का हाल पता लगाना था...
राह में हमको कुछ मजदूर मिले,
सड़क किनारे काम में थे वो लगे हुए...
कौतुहल में हम उनसे मिले,
पूछा सावन के इन दिनों किस काम में वो लगे हुए ?
कुछ "खोलियां" हमको बनानी है
काम यह सावन जाने से पहले निपटानी है...
खोली में जब हमने झाँका, तो चक्कर आई,
कहा हमने, अरे भाई यह क्या खोली बनाई...
मजदूर मुस्काया और बोला,
साहब यह आदेश थी हमको आई,
6X2 की सही नाप की खोली है हमने बनाई...
बात सुन उसकी क्या हम कहे, बात यह समझ न आई
बर्बस होठों पर एक डर मिश्रित मुस्कान चली आई ...
सावन अब पहले सा न आता है, यह बात हमने जान ली,
"काकी", "मौसी", "चचा" संग, नई खोली का पता भी लाता है
अब जब सावन आये तो बस घर रहना ही मनभाता है !!!