Sunday, September 23, 2007

ऐसे क्यों है हम ...

ये नया दौर है
नया ज़माना
भूले हम सब
जो भी हुआ पुराना
खाना बदला
पीना बदला
बदला है पहनावा
जीवन बदला
बदले गये नाम
बदले आचार- विचार
और बदल दी भाषा
हिन्दी हो सब भूल गये
आधो को इंग्लिश ने न अपनाया
डूबतो को तब दिया
"हिंग्लिश" ने सहारा
हिंग्लिश अब
हिन्दी से ज्यादा बोली जाती है
और इसे बोल
दुनिया बहुत इतराती है
"नमस्कार" को सब भूल गये
हॉय-बाय अब काम आती है
माँ-पिता का पता नही
मॉम- डैड अब मिल जाते है
चाचा-ताऊ, मामा-मौसा किस के है
अंकल हर गली में मिल जाते है
ये हम ही क्यों ऐसे है
जो कुछ सही से ना अपना पाते है
अपनी संस्कृति तो छोड़ चुके
और दुसरी को अपना नही पाते है ...
--- अमित २३/०९/०७

Thursday, September 20, 2007

बे-व्फाई

मैं बे-वफा हरगिज़ ना था
की थी मैंने भी वफा
जो मैं दिखा ना सका
दीवाना मुझे करार किया था
थीं मेरी कुछ मजबुरिया
हर कदम पर जिसने
लाचार मुझे किया था
तुम तो थी
जिसे हम पर पूरा यकीन था
फिर क्यों किया ऐसा
तुमने किया मुझे क्यों रुसवा
क्यों तुम ने वो सब सच माना
जो कभी हुआ न था
ऐसा क्या था दुनिया की बातों में
जो पल सारा विश्वास डोल गया
तुम तो करती इंतज़ार
तुम तो रखती हम पर एतबार
दुनिया का किसे डर था
किसे थी परवाह दुनिया की
मजबुरिया कब तक रास्ता रोकती
दुनिया कब तब आड़े आती
तुम साथ जो हमारा देती
कुछ भी जहाँ में होता
आख़िर जीत हमारी होती ...


--- अमित २२/०९/०७

Wednesday, September 19, 2007

ए वक़्त ...

ए वक़्त ज़रा ठहर जा,
अभी तो हसरतें बाक़ी हैं।
रात अभी जवान हुई है,
इसका घूँघट अभी बाक़ी है।
शमा तो बस अभी जली ही है,
परवाने का जलना अभी बाक़ी है।
उनकी जुल्फें तो अभी खुली हैं,
जुल्फों का बिखरना अभी बाक़ी है।
अभी तो पैमाने से पी है,
आंखों के जाम अभी बाक़ी हैं।
लब तो अभी सिले हुऐ हैं,
उनसे अरमान निकलना अभी बाक़ी है।
अभी तो हम होश में है,
मदहोश होना अभी बाक़ी है।
ए वक़्त तू अभी जता कहॉ है,
उनमे हया अभी बाक़ी है।
निकल ने दे दिलों के अरमान,
किसे पता जिन्दगी कितनी अभी बाक़ी है...
( अपनी शरीकेहयात के लिए )
--- अमित २९/०३/०७

Tuesday, September 18, 2007

सोचते है ...

हो गई उनसे फिर
आज राह में मुलाक़ात
था जिसका हमे डर
हो गई वोही बात
पान चबाते , कुर्ता पहने
दूर से चले आते थे
देख उनको हम
मन ही मन घबराते थे
कोशिश थी
उनकी निगाह ना पडे हम पर
यह सोच, इधर-उधर
छिपने की जगह हम तलाशते थे
मगर वो भी साहब
कयामत की नज़र रखते है
जिस कोने में हम छुपे थे
सीधे वहीँ रुके थे
हाथ में था उनका झोला
उसे देख चक्कर खा
दिल हमारा डोला
पता था, घंटो हम सताये जायेंगे
हिम्मत नही है, हममे इतनी
कैसे उनकी शायरी झेल पायेंगे
अपनी हालात देख
बीता समय याद आता है
अपने दोस्तो का
हमसे कतराना समझ आता है
ढाया है हमने,
उन पर सितम बडा
अब वो सोच,
उनकी हालत पर तरस आता है
सच ही कहा है, किसी ने लोगो
अपना करा सामने आता है ...
( अपने दोस्तो के लिए जिन पर मैं अत्याचार किया )
--- अमित १९/०९/०७

Monday, September 17, 2007

तेरे दामन मे ...

ये जो जिन्दगी है
बहुत ही अजीब है ,
जिसने कहा,
मैं समझता हूँ
तुझे ए जिन्दगी
ख़ूब हंसती है
उस पर ये जिन्दगी
हम ने सोचा
आज तो पत्थर मिलेंगे ,
डूबे दिल से निकले
और मोड़ पर हम को
अपनी बाहों में भरते
दो हाथ मिले
मायूस बैठे थे
दूर जा खुद से भी
छिपे बैठे थे
आया मीठी यादों का झोंका
दिल में हुई गुदगुदी
और अपनी आंखों में
यादों की नमी ले बैठे
सच है ,
बहुत कुछ है तेरे दामन मे
ए जिन्दगी
हमे बहुत मिला है
हमे बहुत मिलेगा
फिर भी ना जाने क्यों
हम चिन्ता कर बैठे ...
(समीर लाल जी को समर्पित , कुछ यादें ताजा करने पर )
--- अमित १७/०९/०७

Sunday, September 16, 2007

दिल के पास ...

रहते हैं जब पास हमारे
ख़ूब हंसाते , ख़ूब धमाल कराते है
जाते है जब दूर ज़रा
भावनाओं में दूर बहा ले जाते है
जलाती है जब भी जिन्दगी की धुप हमे
छाया बन हमारे साथ साथ आते है
छाता है जब भी निराशा का अँधेरा
आशा का दीप ये जलाते है
नाम नही कोई इनके रिश्ते का
कभी बंधु, कभी दोस्त
कभी सारथी, कभी गुरू
रुप-रुप में ये मिल जाते
रहे चाहे कहीँ भी
मगर दिल के बहुत पास आ जाते हैं ...
--- अमित 16/09/०७

Friday, September 14, 2007

तुमने ...


हर उम्मीद को

ना-उम्मीद में बदला है तुमने,
हर आस को

निराश किया है तुमने ,

झटका है हमेशा ही तुमने

बढाया जब भी हाथ हमने,

बदला है तुमने तकरार में

की जब भी कुछ बात हमने,

की जो हमने कुर्बानियाँ

दिया नाकामियाँ नाम तुमने,

ना आए तुम पर आंच

इस लिए चुप रहे हम

और बदनाम किया

हमे गली-गली तुमने,

टूट तो हम चुके थे

चूर-चूर किया है तुमने,

हमारे प्यार को

खेल कहा है तुमने

और अपनी दिल्लगी को

मोह्बत पुकार है तुमने,

बंद किए मेरे लिए

सब रास्ते तुमने

और देख अब भी खोला है

तेरे लिए दिल का दरवाजा हमने ...
- अमित १४/०९/०७

Tuesday, September 11, 2007

हम है सूत्रधार ...


आता जब भी कोई काम नया

छोटा हो या चाहे हो बड़ा
रखी है हमने नींव उसकी

और दिया है मज़बूत आधार

बनाये रास्ते, दिया माहौल

ना आये कोई अड़चन

और अच्छे से चले हर काम

खोजे हमेशा वो रास्ते

मिनटों में ख़त्म हो

जिससे घंटों के काम
पेश आई जब भी कोई मुश्किल

निरंतर किया हमने काम

और किसी ना होने दिया कोई नुकसान

मांगी जब भी किसी ने मदद

हाथ बढा कर दिया हमने साथ

कोई भी रहा हो लक्ष्य

किया पूरा हमने हर काम

परदे के पीछे रहते है

हर काम के हम है सूत्रधार

और सी-सी-डी है अपना नाम ...

( अपनी टीम के नाम )


--- अमित ११/०९/०७



११ सितम्बर ...


रोज सा दिन निकला था वो भी

रोज से काम में लगे थे सभी

रोज सी ही हर तरफ सरगर्मी थी

सब कुछ ही तो था रोज सा

बस पल में सब कुछ बदल गया

जो हँसता-गाता था पल भर पहले

क्षण में गम़गीनियो में तब्दील हो गया

समझ किसी को कुछ भी ना आया

जो जहाँ था जड़ रह गया

कुछ हो पाता , इस से पहले

जो था शहर; वो शमशान हो गया

वो जो-जो मरा था

वो ना हिंदू था, ना मुस्लमान था

वो ना था सिख, ना इसाई था

जिसने अपनी जान गवाई थी

बस एक इंसान वो था

जिस ने था उसको मारा

उसका कोई मज़हब न था

वो कोई इंसान ना था

हुआ उस दिन इंसानियत का कत्ल था

याद उसको कर के आज भी

दिल अपने दहल जाते है

कुछ अपने, कुछ बेगानो की याद में

अपनी आंखों में अंशु भर आते है

आओ साथ उठे और करे प्र्यतन

शान्ति का अभियान हम विश्व में चलायेंगे

हम सब जानते है दुसरा ११ सितम्बर हम न सहपायेंगे ...


(११ सितम्बर को अपने जान गवाने वालो को श्रद्धा नमन )


--- ११ /०९/२००७

Monday, September 10, 2007

भाषा ज्ञान ...


जब स्कूल को हम जाते थे

भाषाओं की कक्षाओं से हमेशा घबराते थे

हिन्दी के थे याद

चार दोहे, दो छन्द और दो चोपाई

बुरे वक्त पडे तो बहुत काम आते थे

अंग्रेजी को शक्ल हमारी ना भाती थी

भूतकाल की किर्या हमेशा वर्तमान में याद आती थी

गणित-विज्ञान में जरा अच्छे थे

इसी कारण मास्टर जी को थोड़ा जचते थे

गणित- विज्ञान में बच जाते थे

और भाषा की कक्षा में रोज लताडे जाते थे

कहते थे मास्टर जी,

गणित-विज्ञान से देश के काम तो आओगे

बगैर भाषा ज्ञान के दूर ना ज्यादा जा पाओगे

भाषा से आते है संस्कार

और होता है संस्कृति का ज्ञान

संस्कार को जो आचरण में लाओगे

तभी अपनी ज्ञान-संस्कृति को दूर तलक फैला पाओगे

आज, याद उनके आते हमे बोल है

देखते जब अपने देश ही हालत डामदोल हैं

पकड़ते है कान अपने

अपने बच्चो के साथ ऐसा ना होने देंगे

उन्हें भाषा का अच्छा ज्ञान कराएंगे ....


--- अमित १०/०९/०७

Friday, September 7, 2007

गागर में भरती सागर ...

बात हो अगर शब्दों की
तरकश में इनके कमी नही
दिखती थी जैसे
अर्जुन को आंख उस चिडि़या की
निशाना इनका भी अचूक रहता है
एक एक शब्द है सधा हुआ
आपना निशाना लिया हुआ
किस शब्द को कहॉ मिलेगा मान
और कहॉ आएगी उस से जान
इन सब बातों का है;उनको गूढ़ ज्ञान
अगर करुंगा मैं शब्दों जा ज्यदा इस्तमाल
शायद होगा वो उनका अपमान
गागर में सागर यें भरती है
चन्द शब्दों में बड़ी बात कहती है यें
"रचना" है इनका नाम ...

--- अमित ०६/०७/०९

Thursday, September 6, 2007

सच का स्वाद...

क्यों ऐसा होता है
सच का स्वाद,
ज़रा कड़वा होता है
कहते हम हैं; सच बोलो
जब दीखता हमे कोई; आईना है
दुश्मन वो अपना हो जाता है
उसके बोल
कोडों से तन पर पड़ते है
देख उसे
आंखों में लहू दौड़ आता है
साथ खडे हो उसके तो
साँसों बोझिल हो जाती है
भीड़ में भी रह कर
वो अक्सर तन्हा क्यों हो जाता है
जो होता था कल तक प्यारा
क्यों अजनबी सा दुबारा हो जाता है
याद मगर उसकी तव आती है
जब ठोकर खा टूटा भ्रम हमारा होता है
--- अमित ०६ /०९/०७

चिट्ठाकारी को अल्प-विराम और सुनीता (शानू) ...

हाँ; तो दोस्तो
एक हैं सुनीता जी,
इस चिट्ठाकारी की दुनिया की
एक जानी-मानी हस्ती !
कोई नही यहाँ पर
पढ़ता जो ना ब्लोग आप का
रोज -रोज आकर !
गुड सी मीठी इनकी कविता
बरबस ही हम सब का मन
उनको पढने को करता !
अभी गये दिनों
मानव कर्तव्यों ने इनको पुकारा
और देते हुए उनको मान
दे दिया आप ने
चिट्ठाकारी को अल्प-विराम
और सब को कह दिया; अलविदा !
ये चिट्ठाकारी भी; अज़ब बिमारी है
लग जाये तो; सब पर पड़ती भारी है
आप भी इस से बच ना पाई है
दो-दो कर्तव्यों का भार लिए
वापस येँ, हम लोगो के लिए आई है
हम भी पाठक धर्म निभायगे करते है वादा, रोज आपकी कविता पढने आएंगे ...
(सुनीता जी की वापसी पर)
--- अमित ०६/०९/०७

पहली मोह्बत ...

सुना है ,
कहते है लोग
भुलाये नही भूलता
यह पहला प्यार
उठती रहती है कसक
हमेशा; इस पहले प्यार की
यादें रहती है जवान
हमेशा; इस पहले प्यार की
ऐसा ही कुछ होता है मुझे
याद आता है वो मासूम चेहरा
याद आते है वो जुल्फों के घनेरे
याद आती है बातें उसकी प्यारी-प्यारी
याद आता है उसका सजना-सवारना
मेरा भी अक्सर, आईने में चेहरा देखना
रोज-रोज उस से मिलना
घंटों उसके साथ गुजारना
अपनी ज़ुबां से कुछ भी ना कहना
और आंखों में सारी बाते करना
याद आता है उसकी जुल्फों मे गुलाब लगाना
उसके जिस्म से आती महक से मदहोश रहना
रोज नए नए ख्वाबों की तामिल करना
और याद आती है ना जाने कितनी बाते
जो हमने शुरू तो की पर ख़त्म कभी ना हुई
और दिल में हमेशा मीठी याद बन कर रहीं
संजोया है मैंने अपने दिल में
उसकी यादों का अनमोल खजाना
जानना चाहती हो, कौन है मेरा पहला प्यार
तो मेरी आंखो में देखों
तस्वीर बसी है उसकी मेरी आंखों में देखो
हाँ , सही
सही देखा तुमने, तुम ही बसी हो मेरी आंखों में
तुम ही बसी हो मेरे दिल में, तुम ही मेरा पहला प्यार ...
--- अमित १३/०४/०५

मैं शराबी ...


कहती है दुनिया

मुझे एक शराबी

है कोई यहाँ

जो बतलाये हमे

है क्या इसमे खराबी

जो हुए हम शराबी

नादाँ है दुनिया

कहती है बुरा

होना एक शराबी

जानती नही यह

जीने ही अदा ही बदल जाती

हो जाता जब कोई शराबी

जमीन भी जन्नत बन जाती

गर मिल जाये मैखाने में

मेरे महबूब सा हसीं; साकी

कब पीते है हम जाम प्यालों से

चलते है तव दौर जामो के

बस उसकी मद- भरी आंखों से

छायी रहती ही खुमारी

हम पर अब उसके नशे की

कुछ काम हम पर

कोई दवा नही करती

ला- इलाज है ये

लगी है हम को

तुम से इश्क की बिमारी ...


--- अमित ३०/०४/०५

Wednesday, September 5, 2007

पर्दा नशीं ...


पर्दानशीं है महबूब मेरा

छुपाया है नकाब में

रुख-ए-रोशन उसने

और तडपाया है हमे

उसकी इस अदा ने

चाहा है जब भी

दीदार हमने उसका

दुश्मन बना है

ये पर्दा उसका

माना फबता है पर्दा

हुस्न पर

और गहना है

हया उसका

मगर और दमकता है हुस्न

जब पडती है उसपर

नज़रे उसके आशिक की

सोने पे सुहागे सा होता असर

जब उठता पर्दा और
मिलती जब नज़रे

आशिक की दिलबर से जा कर



--- अमित ०६/०७/09


सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान ...


मन्दिर की आरतियों में

मस्जिद से आती अज़ानो में

गिरजा से होती प्रार्थना में

और गुरूद्वारे में होते कीर्तन में

सुबह-सुबह खेतों को जाते किसानो

स्कूल जाते बच्चों

घर के बाहर जा अपना काम करते लोगो

घर सम्भाती माँ, बहन, बीवी, भाभी

दूर सरहद पर खड़े जवानों

गलियों में हुडदंग करते बच्चों में

ईद-दिवाली मनाते लोगो में

क्रिसमस पर प्रार्थना करते लोगो में

बैसाखी पर भांगडा करने वालो में

कंप्यूटर पर काम करने वालो में

लबों में प्रयोग करने वालो में

यों तो पृथ्वी पर छोटा सा दिखता है

पर हर हिन्दुस्तानी के दिल में बसता है

ये सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान ...


--- अमित ०५/०९/०७